देश में चुनावी त्यौहार शुरू हो चुका है, कई हिस्सों में मतदाता अपना मत डाल चुके हैं, कई और अभी अपने मत डालेंगे.
वोट करने के दौरान एक सवाल जो अक्सर मतदाता के मन में उठता है वह यह कि आखिर उसका वोट कितना सुरक्षित रहेगा और कोई दूसरा उसके नाम से फ़र्ज़ी वोट तो नहीं डालेगा.
इस शंका की पुष्टि के लिए चुनाव अधिकारी वोटर की उंगली पर वोट देने के साथ ही नीले रंग की स्याही लगा देते हैं. इस नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है.
उंगली पर लगी यह स्याही ही इस बात का प्रतीक होती है कि किसी व्यक्ति ने अपना वोट किया है या नहीं.
लोग स्याही लगी अपनी उंगली की तस्वीर फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रहे हैं. इस बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस नीली स्याही को मिटाया जा सकता है.
यह स्याही दक्षिण भारत के में स्थित एक कंपनी में बनाई जाती है. मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम की कंपनी इस स्याही को बनाती है. साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी. उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने इसकी शुरुआत की थी.
कंपनी इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है. एमवीपीएल के ज़रिए सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्लाई की जाती है.
वैसे तो यह कंपनी और भी कई तरह के पेंट बनाती है लेकिन इसकी मुख्य पहचान चुनावी स्याही बनाने के लिए ही है. इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं.
साल 1962 के चुनाव से इस स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह कंपनी भारत के अलावा कई दूसरे देशों में भी चुनावी स्याही की सप्लाई करती है.
चुनावी स्याही को बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से मिटाया नहीं जा सकता.
सिल्वर नाइट्रेट केमिकल को इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है.
जब चुनाव अधिकारी वोटर की उंगली पर स्याही लगाता है तो सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है.
सिल्वर क्लोराइड पानी घुलता नहीं है और त्वचा से जुड़ा रहता है. इसे साबुन से धोया नहीं जा सकता. यह निशान तभी मिटता है जब धीरे-धीरे त्वचा के सेल पुराने होते जाते हैं और वे उतरने लगते हैं.
एमवीपीएल की वेबसाइट बताती है कि उच्च क्वालिटी की चुनावी स्याही 40 सेकेंड से भी कम समय में सूख जाती है. इसका रिएक्शन इतनी तेजी से होता है कि उंगली पर लगने के एक सेकेंड के भीतर यह अपना निशान छोड़ देता है.
यही वजह है इस स्याही को मिटाया नहीं जा सकता. हालांकि कई लोग यह दावे करते हैं कि कुछ खास केमिकल की मदद से वे इस स्याही को मिटा सकते हैं. लेकिन इसके कोई पुष्ट सबूत नहीं मिलते.
साल 1962 के चुनाव से इस स्याही को इस्तेमाल किया जा रहा है और अभी तक चुनाव आयोग इसके दूसरे विकल्प नहीं तलाश सका.
इससे समझा जा सकता है कि यह अमिट स्याही अपना काम बीते कई दशकों से बेहतर तरीके से कर रही है.
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