Tuesday, January 22, 2019

कौन हैं श्री शिवकुमार स्वामी जी जिनके निधन पर है तीन दिन का शोक

श्री श्री श्री डॉक्टर शिवकुमारा स्वामीजी, जिन्होंने 111 साल की उम्र में सोमवार को अंतिम सांस ली, उन्हें कर्नाटक में "वॉकिंग गॉड" या "चलता-फिरता भगवान" के नाम से जाने जाते थे.

वे पिछले आठ से भी ज़्यादा दशक से सिद्धगंगा मठ के प्रमुख थे, जो बेंगलुरू से 70 किलोमीटर दूर टुमकूर में लिंगायत समुदाय की सबसे शक्तिशाली धार्मिक संस्थाओं में गिना जाता है.

कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त चीफ़ सेक्रेटरी डॉक्टर एसएम जामदार ने कहा, "लिंगायत स्वामियों में, या कहें कि भारत के आध्यात्मिक गुरूओं में, उनकी शख़्सियत दुर्लभों में भी दुर्लभतम थी. वे कई स्वामियों के आदर्श थे."

बाक़ी धार्मिक गुरूओं से अलग

धार्मिक विषयों के जानकार, वचन स्टडीज़ के पूर्व निदेशक रमज़ान दर्गा कहते है, "88 सालों से उन्होंने हर जाति और हर समुदाय के अनाथों और बच्चों की सेवा की. कोई भी उनके आवासीय स्कूलों में जा सकता था, पढ़ सकता था. वो जो करते थे, वो बड़ा सीधा था - कि लोगों की सेवा करना भगवान की सेवा करने जैसा है."

चित्रदुर्गा स्थित मुर्गाराजेंद्र मठ के डॉक्टर शिवमूर्ति मुरूगा शरनु स्वामीजी ने कहा, "उनके मन में कभी भी जाति को लेकर कोई दुर्भावना नहीं रही. उन्होंने सबके लिए खाने का इंतज़ाम किया, ख़ास तौर से बच्चों के लिए, और उन्हें ज्ञान अर्जित करने और समाज को लेकर जागरुक होने के लिए प्रोत्साहित किया."

दर्गा कहते हैं, "केवल अलग जातियों से ही नहीं, अलग धर्मों से भी, जैसे मुसलमानों के बच्चों ने भी उनके आवासीय स्कूलों में पढ़ाई की."

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डॉक्टर जामदार और दर्गा ने कहा कि स्वामीजी ने "केवल बासव की विचारधारा के अनुरूप जीवन जिया."

रमज़ान दर्गा ने कहा, "बासव विचारधारा ने सभी जाति और नस्ल की व्यवस्था को नकार दिया. वो वैदिक व्यवस्था के ठीक उलट है जो जाति व्यवस्था को मानती है. बासव समानतावादी थे. और स्वामीजी ने बासव की सोच वाले समाज को बनाने के लिए काम किया."

डॉक्टर जामदार कहते हैं, "आठ दशकों तक उन्होंने बच्चों को मुफ़्त भोजन और मुफ़्त शिक्षा दी. उनके संस्थानों में तीन हज़ार छात्र पढ़ा करते थे. आज वहाँ आठ से नौ हज़ार छात्र पढ़ते हैं. उनके छात्र पूरी दुनिया में फैले हैं. एक अनुमान है कि उनके संस्थान से लगभग 10 लाख छात्रों ने पढ़ाई की है. "

डॉक्टर शिवमूर्ति ने बताया, "उन्होंने सैकड़ों शिक्षण संस्थान बनवाए. उन्होंने इतनी लंबी उम्र अपने खान-पान और जीवन शैली में अनुशासन की वजह से पाई. "

थिएटर कलाकार सुषमा राव ने स्वामीजी को याद करते हुए एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखी है. अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ''मैं उस समय करीब 13 साल की थी. हम लोग स्कूल की तरफ से शिवगंगा घूमने गए थे. वहां से लौटते हुए हम सभी सिद्दगंगा मठ पर दोपहर के खाने के लिए रुके. खाने से पहले हम कुछ लड़कियों को अलग बैठने के लिए बोल दिया गया. कुछ देर में भगवा चोला ओढ़े एक बूढ़े साधू बाबा अपने अनुयायियों के साथ वहां से गुज़रे. उन्होंने हमसे पूछा कि हम अलग क्यों बैठी हैं. हमने बताया कि इस समय हमारा मासिक धर्म चल रहा है इसलिए हमें अलग बैठाया गया है.''

''यह जानकर उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने कहा यह तो सामान्य सी शारीरिक प्रक्रिया है, इसे लेकर शर्म क्यों है. उन्होंने हमें बाकी लड़कियों के साथ बैठकर खाने के लिए कहा. उन्होंने मुस्कुराते हुए हमें समझाया कि कभी भी उन बातों के लिए शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए जो एक महिला होने के नाते हमारे शरीर में होती हैं. हमें हमेशा अपने शरीर पर गर्व होना चाहिए. उस समय नहीं मालूम था कि वे कौन थे. हम उन्हें 'घूमने वाले भगवान' के तौर पर याद करते थे. हमारे लिए वे एक आदर्श थे.''

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