Wednesday, January 30, 2019

मोदी से रिश्ते और बयानों से समझें क्या है गडकरी की पॉलिटिक्स

गडकरी ने अपने बयान में कहा, "सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है. इसलिए सपने वही दिखाओं जो पूरे हो सकें. मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं, मैं जो बोलता हूं वो शत प्रतिशत डंके की चोट पर पूरा होता है."

अपने इस बयान में गडकरी ने किसी नेता या पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका यह बयान उनकी अपनी ही सरकार की मुश्किलों को बढ़ा सकता है. गडकरी के बयान के बाद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट किया है, गडकरी जी हम समझ गए हैं कि आपका निशाना किधर है.

वहीं एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्वीट किया है गडकरी काफ़ी चतुराई से पीएम मोदी को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं. इन सबका असर ये हुआ है कि बीजेपी को सफ़ाई देनी पड़ी है कि नितिन गडकरी का बयान विपक्ष के नेताओं के लिए था, ना कि नरेंद्र मोदी के लिए, क्योंकि प्रधानमंत्री जी सपने नहीं दिखाते हैं, सपने पूरे करते हैं.

दरअसल ये कोई पहला मौका नहीं है, जब गडकरी ने ऐसा बयान दिया है जो उनकी अपनी सरकार के लिए ही मुश्किल भरा साबित हो रहा है. बीते सात जनवरी को नागपुर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वे आरक्षण की व्यवस्था में यक़ीन नहीं रखते हैं. 'इस देश में इंदिरा गांधी जैसी नेता भी थीं, क्या उन्होंने कभी आरक्षण का सहारा लिया.'

इससे पहले भी एक बार मराठा आरक्षण के मुद्दे पर कह चुके थे कि आरक्षण देने का क्या फ़ायदा जब नौकरियां ही नहीं हैं.

इससे पहले 24 दिसंबर, 2018 में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम और तीन राज्यों में पार्टी के हाथ से सत्ता निकलने पर दिल्ली में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सालाना लेक्चर में उन्होंने कहा था कि पार्टी के विधायक और सांसद अच्छा काम नहीं करते हैं तो उसकी ज़िम्मेदारी पार्टी के मुखिया की होती है.

गडकरी के ऐसे बयान जब भी आते हैं राजनीतिक तौर पर हेडलाइंस बनाते हैं, क्योंकि मौजूदा समय में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी के सामने इस तरह के बयान देने वाले वे इकलौते नेता हैं.

उनके इन बयानों पर वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार अजय सिंह बताते हैं, "गडकरी जी खुलकर बोलते हैं, उनके दिमाग में जो आता है, वो बोलते हैं. लेकिन वे बीजेपी के विरोध में बोल रहे हैं या फिर प्राइम मिनिस्टर के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं, ये कहीं से समझ में नहीं आता है. वे जो बोलते हैं वो तो किसी और पार्टी के लिए भी सही हो सकता है."

बीजेपी पर नब्बे के दशक से ही नज़र रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार विजय त्रिवेदी की राय इससे उलट है. वे कहते हैं, "नितिन गडकरी मंजे हुए राजनेता हैं. वे जो कुछ भी बोलते हैं उसके मायने होते हैं. उन्होंने अपने ताज़ा बयान से इस ओर इशारा किया है कि उनकी सरकार में कुछ लोग ऐसे हैं जो केवल सपने दिखाते होंगे, लेकिन वे ख़ुद उनमें शामिल नहीं हैं. तीन राज्यों में बीजेपी की हार पर जो उनका बयान आया था, वह तो कांग्रेस के लिए नहीं ही रहा होगा ना."

दरअसल, नितिन गडकरी भारतीय जनता पार्टी के कोई आम नेता नहीं हैं, वे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. पार्टी के अंदर उनकी पकड़ कितनी मज़बूत रही है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने संविधान को उनको दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए बदला था.

2009 से 2013 के बीच भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी के चलते पार्टी का संविधान ज़रूर बदला लेकिन पूर्ति घोटाले की आंच के चलते वे दोबारा पार्टी के अध्यक्ष नहीं बन पाए थे. इसके अलावा वे उस नागपुर से आते हैं जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय रहा है. ऐसे में उन्हें संघ का बेहद नज़दीकी नेता माना जाता रहा है.

विजय त्रिवेदी कहते हैं, "नितिन गडकरी जी को एक तरह से संघ के वायस के तौर पर देखा जाता है. ऐसे में उनके बयान से एक बड़ा संदेश ये ज़रूर उभर रहा है कि क्या संघ, ऐसे संदेश पार्टी और सरकार को तो नहीं देना चाहता? क्योंकि संघ से समर्थन के बिना गडकरी जैसे बड़े नेता ऐसे बयान तो नहीं ही दे सकते हैं."

हालांकि मराठी पत्रकार और विश्लेषक प्रकाश बल के मुताबिक, "संघ से गडकरी की बेहद नज़दीकी है लेकिन संघ उनके सहारे मौजूदा सरकार पर सवाल उठा रहा होगा, ऐसा आकलन करना बहुत दूर की बात होगी."

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