Tuesday, November 12, 2019

تعرف على المدينة التي دشنت طباعة الكتب في العالم

تمثل ورشة "أنتيكا ستامبريا أرمينا" في مدينة البندقية الإيطالية، أحد أحلام حياة باولو أولبي، الذي يعمل في مجال تجليد الكتب وصنع الورق.

فلهذه الورشة التقليدية، الكائنة في قصر يعود للقرن الثامن عشر وتمتلكه الآن جمعية "الآباء المخيتاريين" التابعة لطائفة الأرمن الكاثوليك، هدف طموح. إذ يأمل أولبي أن يعيد من خلالها إلى البندقية مجدها الغابر في مجال الطباعة، بفضل ما تحتوي عليه الورشة - التي يعني اسمها حرفيا "المطبعة الأرمنية القديمة" - من مكابس للطباعة وغرفة للتجليد، ومساحة مخصصة لتدريب جيل جديد من العاملين في هذا المجال.

فعلى الرغم من أنه يُشار إلى ألمانيا غالبا على أنها مهد الطباعة في العالم، في ضوء أن يوهان غوتنبرغ اخترع هناك أسلوب الطباعة بالحروف المتحركة في منتصف القرن الخامس عشر؛ فإن جمهورية البندقية كانت صاحبة الفضل في إعطاء هذه الصناعة الدفعة الأكبر.

وتقول فيديريكا بينيديتي، التي تعمل في إحدى أقدم المكتبات العامة بإيطاليا، إن سمات وخصائص البندقية أدت إلى حدوث "تطور استثنائي" في هذا المجال، منذ أن وصل إلى تلك البقعة من العالم في عام 1469.

وأوضحت أن هذه المدينة الساحلية كانت تشكل "القوة البحرية الرئيسية في البحر المتوسط، باعتبار أنها مثلت مركز شبكة كثيفة للعلاقات التجارية مع القوى الأوروبية وغير الأوروبية الكبرى. وجلب إليها التجار والصنّاع المهرة رؤوس الأموال والابتكارات التكنولوجية".

وفي ظل توافر المواد الخام وظروف التبادل التجاري المواتية؛ تمتعت البندقية بوضع مثالي فيما يتعلق بقدرتها على تلبية حجم الطلب المرتفع على المواد المطبوعة، سواء من باقي أنحاء أوروبا أو من مناطق أخرى في العالم.

لكن هيمنة المدينة على حركة التجارة في ذلك الوقت، لم تكن العامل الوحيد الذي أدى لازدهار صناعة الطباعة فيها. فحسبما تقول بينيديتي كان "عالم التبادل التجاري والصنّاع المهرة في البندقية يتسمان بطابع حيوي للغاية ومنفتح بشدة على الإبداعات الجديدة".

فقد كانت "سارانسيما" - كما عُرِفَتْ جمهورية البندقية في ذلك الوقت - مدينة ذات طابع عالمي، بل وإحدى أغنى مدن أوروبا حينذاك. وشكلت أيضا بقعة بلغت من الأهمية والنفوذ قدرا، جعلها تستعصي على الخضوع لنفوذ أو رقابة روما والكنيسة الكاثوليكية في أغلب الأحيان. بجانب هذا وذاك، وفرت البندقية تربة خصبة لإحداث قفزة في الصناعة التي دُشِنَت بفعل اختراع غوتنبرغ.

ويقول أولبي: "جاء العاملون في مجال الطباعة إلى هنا، لأننا كنا ننعم بحرية الصحافة. فالبندقية كانت جمهورية وليست `سينيورية`"، وهو الاسم الذي كان يُطلق على حكومات مٌعلنة بحكم الأمر الواقع في مدن إيطالية خلال القرون الوسطى وعصر النهضة، وكانت تخضع لسلطة سيد إقطاعي.

ومن بين الشخصيات التي عملت في هذا المجال؛ ألدوس مانوتسيوس، عالم الإنسانيات والباحث في كلاسيكيات الأدب الإغريقي واللاتيني. وُلِدَ هذا الرجل في بلدة غير بعيدة عن روما، وانتقل للعيش في البندقية عام 1490. ومثله مثل الباحثين والفنانين والمثقفين الآخرين، اجتذبته الحرية النسبية التي كانت تسود هذه المدينة، وألهمته مقومات النهضة الفكرية المتوافرة فيها، بعيدا عن القبضة الصارمة للكنيسة.

هناك أنشأ دارا للطباعة، طبع فيها خلال عام 1495 باكورة كتبه، الذي أعقبه عدد من النصوص الأخرى. جاء ذلك حسبما قالت بينيديتي، في إطار مشروع طموح تبناه مانوتسيوس لطبع كتب تعليمية تهدف لنشر كلاسيكيات الثقافة الإغريقية واللاتينية، وحمايتها كذلك.

وفضلا عما تمتع به من ثقافة، كان ألدوس مانوتسيوس صاحب رؤية مختلفة كذلك، إذ أصبح رائدا في طباعة كتبه الكلاسيكية بحجم صغير يسهل حمله. وكانت هذه الكتب - الأشبه بكتب الجيب المعروفة حاليا - تُباع بأسعار في المتناول.

ويصف أولبي مانوتسيوس بأنه "كان رجلا رائدا للغاية. ورغم أن ما فعله يبدو لنا الآن بلا قيمة، فإنه شكلّ تطورا كبيرا بالنسبة للحقبة التي كانت تُستخدم فيها، كتب ضخمة للغاية وثقيلة بشدة".

ومثّل تغيير التفاصيل الجمالية للطباعة، إنجازا آخر لهذا الرجل. فبينما واصل غالبية رفاقه في مجال طبع الكتب ونشرها، استخدام النمط التقليدي للحروف المطبوعة، الذي ابتكره غوتنبرغ، استحدثت دار النشر التي أسسها ألدوس مانوتسيوس وحملت اسم "أولداين"، نمطا آخر نُسِبَ إليها وأُطْلِقَ عليه اسم "أولداينو" تُكتب فيه الحروف بشكل مائل.

ويعود الفضل في هذا الابتكار إلى فرانشيكو غريفو، الذي كان يعمل مع مانوتسيوس. ويُعرف هذا النمط حاليا على نطاق واسع باسم "إيتاليك"، نظرا لأنه اخْتُرِعَ في إيطاليا وعلى يد رجل إيطالي.

ويعقب أولبي على ذلك بالقول إن مانوتسيوس أراد "شيئا أكثر رشاقة وخفة وأقل صرامة. إذا أعتقد أنه سيصبح من الأسهل قراءة الكلاسيكيات الإغريقية واليونانية، إذا كُتِبَت بخط ذي طابع أكثر حداثة".

بجانب ذلك، أدرك مانوتسيوس أن الكتابة بهذا النمط من الحروف، ستؤدي إلى شغل مساحة أقل من الصفحة، مقارنة بتلك التي تشغلها الكلمات المطبوعة باستخدام الحروف التقليدية الأكثر سُمكا، التي ابتكرها غوتنبرغ. وقد قاد ذلك - جنبا إلى جنب مع ابتكار الحجم الأصغر من الكتب - إلى جعل المطبوعات في متناول العامة بشكل أوسع نطاقا.

وتوضح بينيديتي: "كانت الكتب التي طُبِعَتْ بهذا الحجم واسْتُخْدِمَ فيها النمط المائل من الحروف المطبوعة أرخص ثمنا وأسهل في الحمل والتعامل معها والنقل كذلك، وقد شجعت على القراءة في أوساط، تختلف عن دوائر الخاصة والصفوة، كما وسعت مجالات الاطلاع أمام القراء".

Thursday, October 31, 2019

واتساب تقاضي شركة إسرائيلية بسبب "مراقبة" هواتف في دول منها الإمارات والبحرين

أقامت شركة واتساب المملوكة لشركة فيسبوك دعوى قضائية ضد مجموعة "إن إس أو" الإسرائيلية، متهمة إياها بالوقوف وراء قرصنة إلكترونية استهدفت صحفيين وناشطين وشخصيات مجتمع مدني أخرى في دول، منها الإمارات العربية المتحدة والبحرين.

وتتهم واتساب الشركة الإسرائيلية المتخصصة في صناعة برمجيات التجسس، بإرسال برمجيات خبيثة لنحو 1,400 هاتف محمول بغرض المراقبة.

وضمت فئات المستخدمين المتضررين صحفيين ونشطاء حقوقيين ومعارضين سياسيين ودبلوماسيين في دول، منها الإمارات والبحرين والمكسيك.

وأضافت واتساب أن الشركة الإسرائيلية اتخذت عددا من الحسابات على واتساب وتسببت في نقل شفرة خبيثة عبر خوادم شركة واتساب في أبريل/نيسان ومايو/أيار.

وفي بيان، قالت واتساب: "نعتقد أن هذا الهجوم استهدف على الأقل مئة من أعضاء المجتمع المدني، في انتهاك سافر".

وقالت واتسآب إنها تسعى إلى استصدار أمر قضائي دائم بمنع شركة "إن إس أو" من الاستفادة من خدمتها.

ونوهت شركة واتساب التي استحوذت عليها شركة فيسبوك عام 2014، إنها المرة الأولى التي يقوم فيها مزوِّد خدمة رسائل مشفرّة باتخاذ تدبير قضائي من هذا النوع.

وتروّج واتسآب لنفسها كتطبيق "آمن" للتواصل؛ كون الرسائل مشفرة بشكل كامل. مما يعني أنها لا تظهر بشكل مقروء إلا على هاتف المرسِل والمستقبِل.

وقالت الشركة الإسرائيلية إنها ستتصدى لدعاوى واتساب.

وفي بيان لبي بي سي قالت الشركة الإسرائيلية: "بأقوى العبارات الممكنة، نرفض دعاوى اليوم وسنتصدى لها بكل حزم".

وأضافت: "غرض شركتنا الوحيد هو تقديم تقنية لهيئات استخبارات وجهات إنفاذ قانون حكومية مرخّصة لمساعدتها في مكافحة الإرهاب والجريمة الخطيرة".

Tuesday, September 17, 2019

Беларусь отрицает создание конфедерации с Россией: "Независимость - это святое"

Россия и Беларусь договорились частично объединить экономики, и фактически речь идет о создании конфедеративного государства, написала 16 сентября газета "Коммерсант". В Минске статью предложили расценивать как "досужие журналистские штампы". Независимость - это святое, и никаких совместных органов управления не создается, потому что страны к этому не готовы, сказала пресс-секретарь президента Беларуси Наталья Эйсмонт.

"Коммерсант" опубликовал некоторые подробности программы экономической интеграции России и Беларуси со ссылкой на документ, который 6 сентября парафировали (то есть предварительно согласовали) премьер-министры Дмитрий Медведев и Сергей Румас.

"Речь идет о довольно радикальном проекте: это частичная экономическая интеграция на уровне не менее чем в Евросоюзе, а в ряде вопросов - аналогичная конфедеративным или даже федеративным государствам", - написал заместитель главного редактора газеты Дмитрий Бутрин.

"Речь идет о поглощении сильно огосударствленной экономикой России почти полностью государственной экономики Белоруссии на уровне управления", - говорится в статье.

Конкретики о том, как будут реализовываться эти меры, в документе нет, признает "Коммерсант".

Например, неясно, чем объединенная таможенная политика будет отличаться от нынешней политики в рамках Евразийского экономического сообщества, а также в чем конкретно заключается объединение налоговых кодексов при сохранении отдельных бюджетов.

Условия малореальные и больше всего в этой статье удивляют сроки, сказал Би-биси старший аналитик "Альпари Евразия" Вадим Иосуб: "Когда пишут, что в течение одного-полутора лет удастся унифицировать Гражданский кодекс, налогово-бюджетную систему, банковскую и таможенную системы и так далее, это - фантастика".

Кроме того, для Беларуси такая интеграция будет невыгодной по многим параметрам, считает Иосуб.

"В качестве наиболее яркого примера можно привести такой: в Беларуси делается ставка на внутренний IT-офшор, который называется Парк высоких технологий. Он год от года увеличивает валютную выручку в значимых для Беларуси масштабах. Унификация бюджетных и налоговых кодексов приведет к невозможности существования таких внутренних офшоров", - говорит эксперт.

Tuesday, August 27, 2019

香港抗议:暴力升级之际林郑月娥坚拒接受示威诉求

经过短暂的平静,香港街道过去这个周末再现严重警民冲突的画面,更出现暴力升级的趋势。同一时间,香港传媒引述消息指,香港政府计划行使权力订立紧急法律,特首林郑月娥在每周例行政府高层会议前接受傳媒访问时,没有否认消息,只说政府“有责任”检视任何可以提供“止暴制乱”手法的法律。

《星岛日报》周二(8月27日)引述消息人士报道,《紧急情况规例条例》授权香港政府在“紧急情况或危害公安”的情况出现时,订立任何行政长官认为“合乎公众利益的规例”,但没有说明政府会针对什么事情行使这个权力。

这条法律订明,香港行政长官可以制定法律对刊物、照片、通讯方法等进行“检查、管制及压制”。换句话说,行政长官可以利用它禁止报刊出版,也能禁止十分受示威者欢迎的Telegram、连登等通讯平台。

这条例也让行政长官也可以就任何人的“逮捕、羁留、驱逐及递解离境”作出规定。消息人士形容,这条修例授予的权力“相当广泛”,而且是香港本地法律,带来的震撼和冲击比动用解放军等中国大陆的力量维持治安要小。

香港示威者在两个多月反对《逃犯条例》修订引发的示威浪潮中,坚持要政府正式撤回修例建议、成立独立委员会调查风波等“五大诉求”。林郑月娥认为,香港政府不是没回应示威者的要求,而是“不接受”。她又指政府已经回应示威者最重求的诉求,即暂缓修例工作

香港政府有机会引用《紧急情况规例条例》的消息引来不同评价,香港泛民主派立法会议员涂谨申认为,如果林郑月娥引用这条法例禁止市民集会、示威,制造出来的和平并不真实,令部分主张利用和平手法争取诉求的市民反感。

但中国全国人大常委谭耀宗指出,任何法律上容许特首去做,并有助防止暴力事件升级的手法,都应该考虑。

林郑月娥会见传媒时也介绍了她早前提出的“对话平台”的筹备进程,并表示,她在过去的周末(8月24日)跟多名前官员或社会人士见面。

其中一名出席会面的前政府官员张炳良向传媒透露,他在会上向林郑月娥提出要正式撤回修例建议,也要成立独立委员会调查事件。但林郑月娥坚持拒绝成立委员会,强调现行的机制已经足够调查针对警察的投诉。

香港理工大学助理教授钟剑华认为,林郑月娥提议的对话平台似乎对解决目前的争议没有帮助,尤其是因为这次运动的特色是没有统一领导,林郑月娥很难找一些能够代表示威者的人对话。“你看媒体报道已经差不多没有提这件事,这反映其实社会对这个对话平台没有期望。”

他早前接受BBC中文访问时形容,香港现时的情况几乎是“无政府状态”,因为政府已经没有公信力,社会也没有人有这种公信力。他认为政府应该伸出“橄榄枝”,让示威者一方有更多人愿意寻求和解,才能对话。

钟剑华称,这些“橄榄枝”应包括政府尽快承诺会成立独立委员会调查事件,因为香港社会对政府越来越不信任,要找到社会信任的人到委员会进行调查将越来越难。“最少要先承诺,接下来委任谁进入委员会、调查的范围是什么,这种工作现在已经比一个月前困难。”

Tuesday, August 20, 2019

中美贸易战:全球经济出现衰退信号,两国和解压力增大

本周,美国债券市场亮起一个巨大的警示牌,预示一场全球经济衰退的来临。

美国10年期国债收益率一度跌破2年期国债收益率,这种现象被称为“美债收益率曲线倒挂”。

过去七次经济衰退前都出现了这一现象,因此它被认为是经济衰退的重要警示信号。

中国经济正在不断放缓,美国总统特朗普面临竞选连任,对两者而言,都不是好消息。分析人士认为,这一信号或许为双方施加压力,加快达成贸易协议。

这是自2007年以来,10年期美债收益率首次低于2年期美债收益率。根据路孚特数据,周三10年期美债收益率一度比2年期美债收益率低了2.1个基点。

按理来说,在债券市场,越长期的债券收益率应该越高,越短期的收益率越低。道理跟储蓄一样,五年定存的利息肯定比一年定存的利息高。

然而,10年期债券一度比2年期债券的收益率低,反映出大量投资者对短期经济衰退的担忧加大,于是抛售2年期债券,买入10年期债券。

投资者宁愿等久一些,少赚点,以收回本金。

收益率曲线倒挂令投资者的不安加剧,他们担心这些信号将终结美国股市持续十年的多头市场。美国周三道琼斯指数和纳斯达克指数跌幅均超过3%。

路透社援引Seaport Global Holdings董事总经理汤姆•迪加洛玛(Tom di Galoma)称,“利率市场很少骗人,从全球来看,现在的市场状况就好像在预言最终审判日即将到来。”

纽约道明证券(TD Securities)利率策略师根纳季·戈尔德贝格(Gennadiy Goldberg)表示,大家越来越相信全球增长正趋于疲弱,也看到一些迹象表明美国投资者正受此观点影响。

“我一直在担心一场经济衰退会在2020年到来。”致同会计师事务所(Grant Thornton)首席经济学家戴安·斯旺克(Diane Swonk)向BBC表示,这场衰退不是由哪一次加征关税或哪项具体政策导致,更多的是一个滚雪球效应,不断累积负面政策导致的。

中美贸易战已开打一年,还在进一步升级。英国脱欧风险并未消除,新设定的10月31日的脱欧期限,提升了市场对硬脱欧风险的担忧。

最新的坏消息来自德国和中国。

刚刚公布的数据显示,德国国内生产总值今年第二季度萎缩0.1%,是6年来最差表现,也是德国经济过去一年间第二次出现季度萎缩。

中国7月工业同比增速降至近17年半新低,再加上7月社会融资增量环比腰斩,进一步凸显实体经济有效需求的不足。

这两个国家的经济表现对全球市场影响甚大。中国不仅是全球第二大经济体,还是全球最重要的增长引擎;德国则是欧盟经济表现的脊梁。

此外,作为全球重要金融中心香港发生的长时间、大规模的示威活动,也影响市场预期。

多重风险叠加下,投资者的避险需求增加,而长期债券作为重要的避险资产,大量投资者买入,这就使长期债券收益率降低,以致一度低于中短期债券。

特朗普把经济增长作为2020年大选的主要纲领,但如果经济发生衰退,他将很难说服选民自己取得了经济成就。

对于衰退的担忧,特朗普把板子打在美联储身上。他责怪美联储降息降得太慢,而自己的经济政策没有问题。

然而美联储经过多次升息后,只小幅降息一次。因此美联储在放宽金融条件方面,仍有降息空间,处境比其他许多央行要有利。

相比之下,很多国家长期保持低利率,已经降无可降。

衰退信号显现后,欧洲央行正在评估是否进一步调降已经是负值的利率,并启动新的购债计划。日本央行也在考虑调降已然为负的利率,并扩大资产购买。

印度、泰国与菲律宾央行也都齐声附和,参与降息的队伍。随着越来越大面积的降息,中国很可能不得不跟随。

虽然,降息可以利用降低企业与消费者贷款成本来刺激经济,同时,降息所导致的本币贬值也能提振出口。然而,对于中国而言,这将为资产泡沫和国内过高的负债带来压力。

Wednesday, July 31, 2019

Не жалейте об уходе Фернандо: на прежний уровень он не вернется

Летом 2016 года красно-белые приобрели Фернандо у «Сампдории» за 12,5 миллионов евро. На тот момент это был самый дорогой трансфер «Спартака». За три сезона в Москве полузащитник стал своим: сбросил лишний вес, вспомнил русский язык (знал еще по «Шахтеру»), раздавал передачи высочайшего класса, как всегда мало двигался, забивал красивые мячи со штрафных и с игры, а также иногда носил капитанскую повязку. За это время он сыграл за «Спартак» в 98 матчах, забил 12 голов и сделал 10 передач.

В 2018 году Фернандо едва не вошел в десятку самых высокооплачиваемых футболистов РПЛ с 2,8 миллионами евро в год. После ухода Квинси Промеса он стал вторым по зарплате в клубе после Луиса Адриано (3,5 млн евро). Солидные деньги, не правда ли?

Фернандо сохранил европейский запал в «Спартаке», потому что это был его первый сезон в России. Команда захлебывалась от эмоций, Массимо Каррера наэлектризовывал футболистов так, что от них сыпались искры. Фернандо был одним из важнейших элементов чемпионского «Спартака»: на нем держалась опорная зона, у Дениса Глушакова были развязаны руки чуть выше, а самому бразильцу не приходилось постоянно бегать вперед. Он дирижировал вектором атаки, раскидывая точные передачи, завершал дальними выстрелами при подключении вторым темпом и лупил по «девяткам» со штрафных.

Второй сезон в «Спартаке» Фернандо провел почти так же ярко, но тучи над «Спартаком» сгущались, команда провалила Лигу чемпионов и умудрилась промахнуться мимо не нужного топ-клубам Кубка России, который лежал на дороге уже с четвертьфинала. Эхо чемпионства аукнулось неразберихой в руководстве, смазанной оценке сезона и отсутствии трофеев.

А после ухода Массимо Карреры «Спартак» опять развалился. В игровую депрессию впали многие, включая бразильца. Фернандо дважды свалился из-за травм, постепенно потерял мотивацию и стал одним из красно-белых разочарований минувшего сезона. Дениса Глушакова он, безусловно, не переплюнул, но все же: с изначально высочайшим уровнем мастерства и космическим опытом Фернандо медленно угасал. Бразилец находился в поиске новой мотивации, но в чемпионате России ее потерять еще легче, чем найти.

В качественном плане переезд в РПЛ на три года – это конкретный застой. Выиграть премьер-лигу и свалить обратно в Европу виделось наиболее перспективной затеей, но Фернандо остался и запустил механизм стагнации. Бразильцы, они же такие: большинство на холостом ходу или по инерции двигаться не способны, им постоянно необходима встряска, новые вызовы. Но Пекин вряд ли похож на Лондон, Мадрид или Париж.

Только вдумайтесь: Фернандо только 27 лет, а он уже переезжает в Китай на огромную зарплату. Это качественный шаг назад. Пример Акселя Витселя, повалявшегося на китайских газонах два года и вернувшегося в Европу в полном порядке, совсем не заразителен. Фернандо не повторит путь бельгийца, хотя одарен не меньше. Витсель изначально скучал в РПЛ и не отдавал всего себя, Фернандо наоборот – вышел на пик формы и стоимости (летом-2018 стоил 14 млн евро), но затем рухнул ниже своего уровня. А теперь он, почему-то, должен найти в себе силы как минимум не сбавить к себе требования, а как максимум – еще раз перерасти чемпионат России (находясь в Китае!), чтобы его очень захотели в Европе. Слишком много переменных.

Менеджмент «Спартака» можно было похвалить, но еще бы они не заработали на продаже футболиста в Китай. При рыночной стоимости в 11,5 миллионов евро красно-белые договорились с «Бэйцзинь Гоань» на 15 миллионов. Теперь на новичка, которым, скорее всего, будет Гус Тил, москвичам не придется добавлять. Да и зарабатывать он вряд ли будет больше бразильца. Так что не жалейте об уходе Фернандо! Он отдал себя лучшего «Спартаку» и вряд ли вернется на прежний уровень где-то еще.

Wednesday, July 24, 2019

गांगुली ने कहा- वनडे टीम में रहाणे और गिल को शामिल नहीं करने से हैरान हूं

खेल डेस्क. भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने वेस्टइंडीज दौरे के लिए चुनी गई टीम को लेकर चयन समिति की आलोचना की। गांगुली ने वनडे टीम में अजिंक्य रहाणे और शुभमन गिल के नहीं होने पर हैरानी जताई। उन्होंने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि टीम में कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो सभी फॉर्मेट में खेल सकते हैं। वेस्टइंडीज दौरे के लिए चुनी गई टीम में गिल को स्थान नहीं मिला। रहाणे को सिर्फ टेस्ट टीम में शामिल किया गया। उन्होंने पिछला वनडे फरवरी 2018 में खेला था। रहाणे ने 90 वनडे में 35.26 की औसत से 2962 रन बनाए।

गांगुली ने बुधवार को ट्वीट किया, ‘समय आ गया है कि भारतीय चयनकर्ता लय और आत्मविश्वास के लिए सभी फॉर्मेट में समान खिलाड़ी को चुने। कुछ खिलाड़ी सभी फॉर्मेट में खेलते हैं। दुनिया की बेहतरीन टीमों में लगातार प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी हैं। यह सभी को खुश करने के लिए नहीं है, लेकिन देश के लिए सबसे अच्छे खिलाड़ियों को चुनना है। टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो सभी फॉर्मेट में खेल सकते हैं। शुभमन गिल और रहाणे को वनडे टीम में नहीं देखकर हैरानी हुई।’

— Sourav Ganguly (@SGanguly99) July 24, 2019
Time has come for indian selectors to pick same players in all formats of the game for rhythm and confidence.. too few are playing in all formats ..great teams had consistent players ..it’s not about making all happy but picking the best for the country and be consistent..@bcci

— Sourav Ganguly (@SGanguly99) July 24, 2019
चयन नहीं होने पर शुभमन ने निराशा जताई थी
शुभमन ने वेस्टइंडीज ए के खिलाफ पांच मैच में 218 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने तीन अर्धशतक लगाया। इंडिया ए के लिए उन्होंने 38 मैच में 1545 रन बनाए। आईपीएल के पिछले सीजन में उन्हें इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का अवॉर्ड मिला था। पिछले सीजन में शुभमन ने 5 रणजी मुकाबलों में 700 रन बनाए। शुभमन ने कहा था, ‘मैं रविवार को भारतीय टीम के चयन का इंतजार कर रहा था। मुझे उम्मीद थी कि किसी एक टीम में जरूर चुना जाऊंगा। चयन नहीं होना निराशाजनक है, लेकिन मैं इस पर और नहीं सोचने वाला हूं। मैं लगातार रन बनाता रहूंगा। चयनकर्ताओं को को प्रभावित करने की अपनी क्षमता के अनुसार बेहतर प्रदर्शन करता रहूंगा।’

रहाणे तकनीकी रूप से मजबूत
टेस्ट टीम के उपकप्तान रहाणे 17 महीने से वनडे टीम से बाहर हैं। उन्हें वर्ल्ड कप टीम में शामिल नहीं करने पर भी पूर्व खिलाड़ियों ने चयनकर्ताओं की आलोचना की थी। इस वर्ल्ड कप में चौथे नंबर पर खिलाड़ी भी भारतीय बल्लेबाजों ने अर्धशतक नहीं लगाया था। रहाणे के तकनीकी रूप से मजबूत हैं। गांगुली इसलिए उन्हें टीम में देखना चाहते हैं। रहाणे ने मध्यक्रम (नंबर 4 से 7) में बल्लेबाजी करते हुए 31 मैच खेले। इस दौरान 32.65 की औसत से 849 रन बनाए।

5 खिलाड़ी सभी फॉर्मेट की टीम में
कप्तान कोहली के अलावा चार खिलाड़ी ऐसे हैं, जो सभी फॉर्मेट के लिए टीम में शामिल किए गए। इनमें रोहित शर्मा, लोकेश राहुल, रवींद्र जडेजा और ऋषभ पंत शामिल हैं। पंत को इस वर्ल्ड कप में भी खेलने का मौका मिला था। उन्हें शिखर धवन के चोटिल होने के बाद इंग्लैंड भेजा गया था। वहां पंत का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। उन्होंने 4 मैच में 116 रन बनाए थे। इस दौरान एक भी अर्धशतक नहीं लगाया था।

Thursday, July 4, 2019

На острове в Италии извергается вулкан, погиб турист

На итальянском острове Стромболи произошло извержение вулкана, погиб один турист, остров покрылся пеплом.

Извержение застало погибшего врасплох, когда он совершал восхождение к вершине вулкана, рассказал итальянскому агентству Анса мэр города Липари Марко Джорджанни.

Турист был убит падающим камнем, сообщил агентству Рейтер представитель службы спасения.

С последствиями извержения борются пожарные. По словам очевидцев, по склону горы стекают два лавовых потока.

Падающий с неба пепел вызвал на острове несколько возгораний.

"Мы видели взрыв из отеля, - рассказала агентству Рейтер работница одной из гостиниц Микела Фаворито. - Был слышен громкий взрыв".

"Мы заткнули уши, и тогда над нами нависло облако из пепла. Все небо в пепле, облако очень большое", - добавила она.

Звуки извержения были слышны на острове Панареа в 27 километрах от Стромболи, рассказала агентству Рейтер британская туристка Фиона Картер.

"Мы обернулись и увидели грибовидное облако, идущее от Стромболи. Все были в шоке", - рассказала туристка.

Отдыхащие, как сообщается, бросались в море, увидев столб пепла, поднимающегося над вулканом.

Остров считается популярным местом отдыха богатых людей и знаменитостей. Стромболи называют "маяком Средиземноморья".

Вулкан на острове - один из наиболее активных на планете, он практически постоянно извергается с 1932 года. Последнее крупное извержение произошло в апреле 2009 года.

Tuesday, June 25, 2019

Работающим пенсионерам индексируют и перерассчитывают пенсию

Даже достигнув пенсионного возраста, многие не спешат по-стариковски усаживаться у телевизоров, а продолжают трудиться. И потому, что преданы своему делу, призванию, а значит, некая формальная цифра «по паспорту» — еще не повод бросать любимое занятие. И потому, что лишняя копейка в кошельке не помешает. И потому, что просто не умеют сидеть сложа руки. По данным Минтруда, каждый пятый пенсионер продолжает работать: из 43,9 миллиона россиян, формально ушедших на покой, трудятся около 9,7 миллиона. И наверняка большинство из них волнует весьма практичный вопрос: а что же в этот период происходит с пенсией — отражаются ли на ее сумме ежегодно производимые государством индексации, влияют ли на ее размер заработок и стаж, продолжающие «капать» и в постпенсионный период.

Одна моя коллега формально давно на пенсии, ей слегка за 60. Но человек очень профессиональный и востребованный, как говорят, с «пропеллером» в известном месте, просто не способна сидеть на диване, погрузившись в сериалы. Грядки ее тоже особо не привлекают. Она вдохновенно продолжает работать: похоже, правду говорят, что бывших журналистов не бывает. Как-то в ходе нашего телефонного трепа задумчиво обронила: «Вот ведь! Соседке-пенсионерке, что давно на печи сидит, пенсию проиндексировали, а я, выходит, не заслужила...» Впрочем, она не особо застряла на этом переживании, и далее наш разговор помчался по профессиональным кочкам.

Ее замечание относительно индексации подвигло к более детальному изучению вопроса. Так вот, сетование было неверно в корне. Пенсию для работающих на самом-то деле индексируют: просто пока человек трудится, это происходит «виртуально», а как перестанет — так процесс перейдет «в реал». Впрочем, тут важны детали, в которые не помешает погрузиться всем заинтересованным лицам.

Из «виртуала» — в «реал»

Действительно, с 2016 года «прямая» индексация пенсий работающих пенсионеров отменена: на руки они прибавку, которая достается их неработающим собратьям, не получают. Но при этом все ежегодные повышения пенсий учитываются в «личном деле» возрастного трудящегося. И ему приплюсуют их «в натуральном виде» после увольнения.

К примеру, человек вышел на пенсию в конце 2017 года, и, допустим, ему начислили страховую пенсию в размере 10 тыс. руб. Но весь 2018-й этот свежеиспеченный пенсионер работал. А по итогам того года, как известно, была произведена индексация в размере 7,05%. Неработающие эту прибавку тут же и увидели в своих кошельках. Наш труженик — нет. Но вот если он в 2019-м решит-таки уволиться, ему эту индексацию пенсии произведут: станет она равна 10 705 рублям.

Правда, начисление это произойдет месяца через два-три после увольнения: нужно время, чтобы сведения от работодателя нашего пенсионера о том, что пожилой человек уволился, поступили в Пенсионный фонд (ПФР).

Но если наш герой будет продолжать работать, его труд в этот период будет также учтен в уже назначенной пенсии — ее будут увеличивать. Перерасчет происходит ежегодно с 1 августа. В его основе — обязательные страховые выплаты, которые работодатель отчисляет за любого работника, сколько бы лет ему ни исполнилось. Исходя из размера этих новых поступлений формируется так называемый ИПК — индивидуальный пенсионный коэффициент, который выражается в баллах (ИПК рассчитывается по формуле, учитывающей все значимые параметры, в том числе срок «переработки», величину заработка).

Максимальное число баллов, которое законом разрешено конвертировать в прибавку к пенсии, а также стоимость балла в разные годы не одинаковы. Так, в 2018-м работающему пенсионеру могли включить в формулу перерасчета, самое большее, три балла. При этом не стоит волноваться, если реально заработанных баллов оказалось больше, скажем, четыре. «Лишний» балл не «сгорит» и будет учтен при подсчетах следующего года. Стоимость балла в каждом году определяет правительство, и ее можно узнать на сайте ПФР. В 2018 году она, к примеру, была 81,49 руб. Следовательно, максимальная прибавка к пенсии работающих пенсионеров в прошлом году (3 балла) составила 244,47 руб. Эту сумму приплюсуют к пенсии с 1 августа 2019 года.

Много это или мало — вопрос, конечно, спорный. Но речь-то о прибавке к пенсии, а при этом человек получает еще и полноценную зарплату. К тому же, как указывает проректор Академии труда и социальных отношений Александр Сафонов, «надо учитывать, что в мировой практике не существует таких систем, при которых одновременно разрешено получать пенсию и продолжать работать». То есть пенсионер либо смотрит днями сериалы и живет на пенсию, либо продолжает работать, но пенсия при этом ему не выплачивается. У нас же — и то и другое.

Правила и исключения

Хорошая новость в том, что никаких административно-бюрократических телодвижений для ежегодного перерасчета пенсии, равно как и для «разморозки» — при увольнении — индексации за предыдущие годы, работающему пенсионеру совершать не требуется. Все делается автоматически, что на казенном языке именуется «в беззаявительном порядке».

Более хлопотные ситуации, когда все-таки требуется заявление работающего пенсионера, — наперечет:

Переезд в район Крайнего Севера или местность, приравненную к нему. В таком случае выплата будет увеличена на районный коэффициент, установленный в регионе.

Увеличение количества иждивенцев. За каждого нетрудоспособного члена семьи, находящегося на обеспечении пенсионера, ему полагается прибавка в размере 1/3 от фиксированной выплаты к страховой пенсии.

Выработка необходимого стажа для получения «северной» надбавки. Если пенсионер имеет 15 лет стажа в районах Крайнего Севера или 20 лет в местности, приравненной к ним, ему полагается прибавка в размере 50% от фиксированной выплаты.

Перерасчет за нестраховые периоды, в течение которых страховые взносы в ПФР не поступают, однако их продолжительность подлежит зачету в стаж. К таким периодам относятся:

— служба в армии;

— отпуск по уходу за ребенком до 1,5 года;

— период ухода за нетрудоспособным гражданином: 80-летним пенсионером, инвалидом I группы и т.д.

Не требуется работающим пенсионерам особых усилий и для того, чтобы отслеживать, как изменилась пенсия в результате ежегодного августовского пересчета, а также невидимой пока глазу индексации. Вся информация доступна в «Личном кабинете» на сайте ПФР. Тем, кто почему-то не доверяет информацию о своих деньгах онлайн-формату, придется за ней прогуляться до территориального отделения фонда.

Возможно, кому-то все эти бюрократические правила и инструкции покажутся скучноватыми. Но они — о реальных деньгах и правилах их получения, а потому для многих работающих пенсионеров читаются, как песня: ведь речь идет о доходах и о наших правах на них.

Sunday, June 16, 2019

Нетаньяху заложил поселение "Высоты Трампа" на Голанских высотах

Премьер-министр Израиля Биньямин Нетаньяху принял участие в церемонии закладки нового поселения на оккупированных Голанских высотах. Поселение назвали "Высоты Трампа" в честь президента США.

Нетаньяху в ходе церемонии заявил, что открытие поселения - дань благодарности президенту Трампу за решение признать суверенитет Израиля над Голанскими высотами.

В поселении пока нет домов, однако есть знак с именем Трампа, а также флагами Израиля и США.

Критики говорят, что шаг Нетаньяху незаконен и направлен в первую очередь на то, чтобы впечатлить публику.

Израильтяне захватили Голанские высоты у Сирии в ходе шестидневной войны 1967 года, а в 1981 году этот регион был взят под израильскую юрисдикцию, что фактически означало аннексию.

Совбез ООН выпустил резолюцию номер 497, которая должна была отменить решение Израиля о юрисдикции над Голанами.

"Это исторический день", - сказал Нетаньяху, назвав в своей речи президента Трампа другом Израиля.

Посол США в Израиле Дэвид Фридман, присутствовавший на церемонии, сказал, что подобные почести уже давно заслужены, но все же оценены по достоинству.

Нетаньяху заявил, что назовет новое поселение в честь Трампа еще в апреле, после того как тот вопреки многолетней внешнеполитической практике США решил признать право Израиля на оккупированные высоты.

Голанские высоты находятся примерно в 40 километрах от Дамаска, площадь региона - около тысячи квадратных километров.

Новое поселение возведут неподалеку от деревни Кела-Берухим, в северной части района.

В воскресенье правительство Израиля одобрило резолюцию премьера с инициативой заложить новое сообщество в районе Голанских высот.

Однако в резолюции не говорится о том, что сообщество будет иметь статус поселения. Кроме того, на строительство пока не было выделено денег.

Оппоненты Нетаньяху отмечают, что по закону до сентябрьских выборов премьер не может инициировать постройку новых поселений.

"Каждый, кто обратит внимание на нюансы этого "исторического решения", поймет, что это ни к чему не обязывающий, фальшивый политический шаг", - заявил газете Times of Israel бывший секретарь правительства Нетаньяху Цви Хаузер.

"Будем надеяться, президент Трамп не знает, что его имя используется в пиар-кампании", - добавил он.

Thursday, May 30, 2019

商务部:对原产于美国等国的进口聚苯硫醚反倾销调查

  中新网5月30日电 据商务部网站消息,商务部30日发布公告,决定即日起对原产于日本、美国、韩国和马来西亚的进口聚苯硫醚进行反倾销立案调查。

  本次调查确定的倾销调查期为2018年1月1日至2018年12月31日,产业损害调查期为2015年1月1日至2018年12月31日。

  据介绍,聚苯硫醚是分子链中带有苯硫基(分子式为C6H4S)的高性能热塑性树脂及其组合物,无论是否经过改性及或是否混合、添加玻璃纤维、矿粉等填充物和助剂,具有耐高温、耐腐蚀、耐辐射、阻燃、电绝缘等优良性能。

  聚苯硫醚可用于纤维纺丝、制膜、涂料、注塑、挤塑、合金等,产品广泛应用在纺织、汽车、电子电器、机械、石油、化工、航天航空等领域。

  该产品归在《中华人民共和国进出口税则》:39119000项下。该税则号项下聚苯硫醚以外的其他产品不在本次调查范围之内。

  公告称,任何利害关系方应于本公告发布之日起20天内,向商务部贸易救济调查局登记参加本次反倾销调查。参加调查的利害关系方应根据《登记参加调查的参考格式》提供基本身份信息、向中国出口或进口本案被调查产品的数量及金额、生产和销售同类产品的数量及金额以及关联情况等说明材料。

  中国新闻网牢固树立“四个意识”,强化导向管理,把准社会发展关键点,用贴近网民的形式宣传科学理论、阐释方针政策、传播主流价值,主流舆论的传播力、引导力、影响力、公信力持续提升。在第28届中国新闻奖评选中,中国新闻网的视频访谈作品《权威专家解析印军非法侵入我国领土的背后》荣获网络访谈类一等奖,网站记者参与创作的《“十九大十九问”系列报道》荣获国际传播类一等奖。2018中国网络媒体论坛上发布的“中央主要新闻网站综合传播力榜”显示,中国新闻网位居第四位。

  2018年,中国新闻网坚持正确的政治方向,紧紧围绕党和国家工作大局,扎实组织开展各项宣传报道工作,鲜明突出时代主题,做大做强正面宣传,为国家建设和发展提供了有力的舆论支持,唱响主旋律,壮大正能量,弘扬社会正气,营造了风清气正的网络空间。

  全面加强和深化习近平总书记重要活动、重要讲话的网上宣传报道

  中国新闻网在报道中旗帜鲜明地体现核心、突出核心、维护核心,统筹各方资源,精心策划,持续加强内容形式创新,做好习近平总书记重要活动、重要讲话的网上宣传。2018年,全网结合重要节点、重要会议活动,利用文字、图解、音频、视频、直播、动漫等全媒体报道方式做好习近平总书记重要活动、重要讲话的报道和解读,在网站新媒体平台重点展示推送。据统计,网站2018全年刊发关于习近平总书记重要活动、重要讲话的主题报道6267篇,原创报道835篇,保持了全年报道的热度。

Wednesday, May 22, 2019

Женщины в "Игре престолов": их видно, но не слышно

Женские персонажи "Игры престолов" говорят в три раза меньше, чем мужские. Об этом свидетельствуют результаты подсчетов, проведенных исследователями сериала.

Внимание: заметка содержит спойлеры - но не финальной серии.

Сериал "Игра престолов" стал одним из крупнейших шоу на телевидении за последнее десятилетие. На этой неделе вышла последняя серия, и теперь можно поговорить о том, как в нем были представлены персонажи-женщины.

Как стало ясно из нового исследования, в течение всех восьми сезонов женщины говорят лишь четверть экранного времени.

Речь мужчин составляет около 75% от всех разговоров в сериале, подсчитала исследовательская группа Ceretai.

Доля времени, отведенного разговорам женщин, варьировалась между сезонами, начиная примерно с четверти времени в первом сезоне и слегка повышаясь до трети к предпоследнему, седьмому сезону.

Как оказалось, последний сезон, в котором многие женские персонажи по сюжету были центральными, был одним из худших по количеству их реплик.

Ceretai - это шведский стартап, исследующий разнообразие в популярной культуре. Разработанный им алгоритм научился определять разницу между мужскими и женскими голосами на видео и может посчитать в секундах и процентах продолжительность речи персонажей каждого пола.

Как и большинство автоматических систем, он иногда ошибается. Точность этого алгоритма составляет около 85%, поэтому цифры могут быть немного выше или ниже, тем не менее ясно, что длительность речи мужчин и женщин в сериале далеко не одинаковая.

Анализируя "Игру престолов", в Ceretai хотели показать, что проблема изображения женщин в медиа весьма широка, рассказала Би-би-си соучредитель компании Лиза Хэмберг.

"Мы делаем это не для того, чтобы люди перестали смотреть шоу, а для того, чтобы они осознавали тот факт, что это несправедливое представление о мире", - говорит она.

Исследователи ожидали, что голоса женских персонажей займут около 30% времени. Это средний процент появления женщин на экране согласно исследованию USC Annenberg о неравенстве в 900 популярных фильмах.

Наибольшая доля женской речи в "Игре престолов" обнаружена в пятом эпизоде четвертого сезона - "Имя его".

Сюжетные линии с ведущими женскими персонажами, такими как Серсея Ланнистер и Дейенерис Таргариен, почти уравнивают женскую речь с мужской - она составляет почти половину от общего времени.

Одна из худших в плане равенства - седьмая серия первого сезона "Ты выигрываешь или умрешь", там героини произносят только шестую часть реплик.

Thursday, April 25, 2019

श्रीलंका बम धमाके: जब हमलावर और चर्च के पादरी का हुआ आमना-सामना

श्रीलंका में बीते रविवार को हुए बम धमाकों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 359 हो गई है और तकरीबन 500 लोग घायल हैं.

पीड़ित परिवारों ने अपने मृत परिजनों के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू कर दी हैं.

इस दर्दनाक माहौल में एक चर्च के पादरी फादर स्टेनली ने हमले से पहले कथित हमलावर के साथ हुई अपनी बातचीत को बीबीसी से साझा किया है.

कथित हमलावर से फादर स्टेनली का सामना श्रीलंका के मट्टकालाप्पु इलाके में स्थित सियोन चर्च में हुआ. इस चर्च में हुए हमले में 26 लोगों की मौत हुई जिनमें से ज़्यादातर बच्चे थे.

'मैंने उससे बात की थी'
फादर स्टेनली बताते हैं, "हमारे पेस्टर (पादरी) विदेश में हैं. चूंकि असिस्टेंट पेस्टर भी उपलब्ध नहीं थे. उन्होंने मुझे कई नए लोगों से मिलवाया था. शायद कथित रूप से उस व्यक्ति से भी जिसने इस हमले को अंजाम दिया"

"मैंने उससे बात की थी. मैंने उसे चर्च के अंदर बुलाया. उसने मना कर दिया और कहा कि वह किसी फोन कॉल का इंतज़ार कर रहा है, ऐसे में कॉल आने पर उसे फोन उठाना होगा."

'उसने सर्विस शुरू होने का टाइम पूछा'

फ़ादर स्टेनली कहते हैं, "हमारा ऑफ़िस चर्च के सामने ही है. वह वहीं खड़ा था. उसने मुझसे पूछा कि सर्विस कब शुरू होती है. मैंने उसके सवाल का जवाब दिया और उसे चर्च में दोबारा बुलाया. हम हमेशा सभी का स्वागत करते हैं."

"वह अपने कंधों पर एक बैग टांगे हुए था. आगे की ओर कैमरा बैग जैसी चीज़ थी. मैं उस समय उसके मकसद से परिचित नहीं था. कई बच्चे कह रहे हैं कि ये काम उसी ने किया है."

"एक बार जब सर्विस शुरू हो गई तब मैं अंदर चला गया. इसके दो - तीन मिनट बाद उसने बाहर बम धमाका कर दिया. बम चर्च के अंदर नहीं फटा. कई बच्चे अपनी संडे क्लास के बाद चर्च के बाहर पानी पी रहे थे. वो इसके बाद ही चर्च के अंदर आते हैं. वे बच्चे और कई लोग उस समय चर्च के अंदर घुस रहे थे. उसी समय बम धमाका हो गया."

फादर स्टेनली बताते हैं कि चर्च के बाहर धमाके के बाद हर तरफ़ कोलाहल का माहौल बन गया.

वह कहते हैं, "धमाके के बाद, गाड़ियों और जेनरेटरों में आग लग गई. आग की वजह से हम धमाके में घायल कई लोगों को बचा नहीं सके. हमने बस कुछ बच्चों को धमाके से दूर निकाला."

'फिर एक और धमाका हुआ'
फादर स्टेनली के मुताबिक़, उनके चर्च में पहले धमाके के बाद एक और धमाका हुआ था.

वह कहते हैं, "हमने लोगों को बचाने के लिए पूरी कोशिश की. इसके बाद हमें धमाके की आवाज़ सुनाई दी और सब कुछ आग में बदल गया. हम ये भूलकर इधर-उधर भागने लगे कि कौन ज़िंदा है और कौन मर गया. इस भागदौड़ में मेरी पत्नी और बेटा भी खो गया. इसके बाद मैंने उनकी तलाश शुरू की तो उन्हें एक अस्पताल में पाया. इस हमले में कई बेगुनाह और बच्चों की मौत हुई है. हमें बस इतना पता है."

तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने अपने मीडिया पोर्टल 'अमाक़' पर इन हमलों की ज़िम्मेदारी क़बूल की है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती क्यूंकि आम तौर से इस्लामिक स्टेट हमलों के बाद हमलावरों की तस्वीरें प्रकाशित करके हमलों की ज़िम्मेदारी तुरंत क़बूल करता है.

इस बात का कोई सबूत नहीं है कि श्रीलंका के हमलों के तीन दिन बाद किया गया इसका दावा सही है.

श्रीलंका सरकार ने एक स्थानीय जेहादी गुट- नेशनल तौहीद जमात- का नाम लिया है और अधिकारियों ने बम धमाके किसी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की मदद से कराए जाने की बात की है.

अब तक 38 लोग हिरासत में लिए जा चुके हैं. इनमें से 26 लोगों को सीआईडी ने, तीन को आतंकरोधी दस्ते ने और नौ को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.

गिरफ़्तार किए गए लोगों में से सिर्फ़ नौ को अदालत में पेश किया गया है. ये नौ लोग वेल्लमपट्टी की एक ही फ़ैक्ट्री में काम करते हैं.

Thursday, April 11, 2019

क्यों नहीं मिट सकती चुनावी स्याही?

देश में चुनावी त्यौहार शुरू हो चुका है, कई हिस्सों में मतदाता अपना मत डाल चुके हैं, कई और अभी अपने मत डालेंगे.

वोट करने के दौरान एक सवाल जो अक्सर मतदाता के मन में उठता है वह यह कि आखिर उसका वोट कितना सुरक्षित रहेगा और कोई दूसरा उसके नाम से फ़र्ज़ी वोट तो नहीं डालेगा.

इस शंका की पुष्टि के लिए चुनाव अधिकारी वोटर की उंगली पर वोट देने के साथ ही नीले रंग की स्याही लगा देते हैं. इस नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है.

उंगली पर लगी यह स्याही ही इस बात का प्रतीक होती है कि किसी व्यक्ति ने अपना वोट किया है या नहीं.

लोग स्याही लगी अपनी उंगली की तस्वीर फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रहे हैं. इस बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस नीली स्याही को मिटाया जा सकता है.

यह स्याही दक्षिण भारत के में स्थित एक कंपनी में बनाई जाती है. मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम की कंपनी इस स्‍याही को बनाती है. साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी. उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने इसकी शुरुआत की थी.

कंपनी इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है. एमवीपीएल के ज़रिए सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्‍लाई की जाती है.

वैसे तो यह कंपनी और भी कई तरह के पेंट बनाती है लेकिन इसकी मुख्य पहचान चुनावी स्याही बनाने के लिए ही है. इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं.

साल 1962 के चुनाव से इस स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह कंपनी भारत के अलावा कई दूसरे देशों में भी चुनावी स्याही की सप्लाई करती है.

चुनावी स्याही को बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से मिटाया नहीं जा सकता.

सिल्वर नाइट्रेट केमिकल को इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है.

जब चुनाव अधिकारी वोटर की उंगली पर स्याही लगाता है तो सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है.

सिल्वर क्लोराइड पानी घुलता नहीं है और त्वचा से जुड़ा रहता है. इसे साबुन से धोया नहीं जा सकता. यह निशान तभी मिटता है जब धीरे-धीरे त्वचा के सेल पुराने होते जाते हैं और वे उतरने लगते हैं.

एमवीपीएल की वेबसाइट बताती है कि उच्च क्वालिटी की चुनावी स्याही 40 सेकेंड से भी कम समय में सूख जाती है. इसका रिएक्शन इतनी तेजी से होता है कि उंगली पर लगने के एक सेकेंड के भीतर यह अपना निशान छोड़ देता है.

यही वजह है इस स्याही को मिटाया नहीं जा सकता. हालांकि कई लोग यह दावे करते हैं कि कुछ खास केमिकल की मदद से वे इस स्याही को मिटा सकते हैं. लेकिन इसके कोई पुष्ट सबूत नहीं मिलते.

साल 1962 के चुनाव से इस स्याही को इस्तेमाल किया जा रहा है और अभी तक चुनाव आयोग इसके दूसरे विकल्प नहीं तलाश सका.

इससे समझा जा सकता है कि यह अमिट स्याही अपना काम बीते कई दशकों से बेहतर तरीके से कर रही है.

Wednesday, April 3, 2019

चुनाव से पहले WhatsApp की सख्ती, बिना सहमति ग्रुप में एंट्री नहीं, फैक्ट चेक के लिए नंबर जारी

WhatsApp ने भारत में फैक्ट चेकिंग सर्विस लॉन्च की है. आम चुनाव जल्द होने वाले हैं और इससे पहले कंपनी ने ये कदम उठाया है. अगर आपको ऐसा लगता है कि WhatsApp पर फेक मैसेज आया है तो आप इसे ne पर भेज सकते हैं जो फेक मैसेज को वेरिफाई करेगी.

Checkpoint Tipline फैक्ट चेक करने वाली एक लोकल स्टार्टअप है जहां फर्जी खबरों का फैक्ट चेक किया जाएगा. जो फर्जी खबर होगी वहां False, Misleading या Disputed का लेबल दिया जाएगा. जबकि सही खबर पर True का लेबल मिलेगा.

वॉट्सऐप ने ग्रुप इन्विटेशन सिस्टम भी शुरुआत किया है जिसके बारे में हमने पहले भी बताया है. इसके तहत बिना किसी के सहमती के किसी को आप ग्रुप में नहीं ऐड कर पाएंगे.

WhatsApp के इस नए फीचर के तहत आप 9643000888 नंबर पर कोई ऐसे मैसेज फॉरवर्ड कर सकते हैं जिस पर आपको शक है. टीम खबरों को वेरिफाई करेगी और सच या झूठ है ये बताएगी.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक वॉट्सऐप ने जो ये फैक्ट चेकिंग सर्विस लॉन्च की है इसे शुरुआती प्रॉब्लम आ सकती है. हमने भी फैक्ट चेक पर एक लिंक भेजा जिसके जवाब में कहा गया, ‘जुड़ने के लिए धन्यवाद लेकिन हम इसे आगे नहीं बढ़ा सकते हैं. रॉयटर्स के मुताबिक एक मैसेज के रिपोर्ट में दो घंटे तक कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला है.

फैक्ट चेक पांच लैंग्वेज को सपोर्ट करता है – इंग्लिश, हिंदी, तेलुगू, बंगाली और मलयालम. टेक्स्ट, वीडिय और इमेज का वेरिफिकेशन किया जा सकता है.

गौरतलब है कि वॉट्सऐप फर्जी फोटो को चेक करने के लिए रिवर्स इमेज सर्च का भी फीचर देने की तैयारी कर रही है. हालांकि ये फीचर अभी टेस्टिंग के फेस में है और जल्द ही यूजर्स को दिया जा सकता है.

फेक न्यूज से बचने के लिए वॉट्सऐप ने बल्क मैसेज फॉरवर्ड पर भी लगाम लगाया है. अब एक साथ पांच लोगों को मैसेज फॉरवर्ड करने की लिमिट सेट कर दी गई है, ताकि फर्जी खबरों को फैलाया न जा सके.
अल्जीरिया की सरकारी मीडिया के मुताबिक़ राष्ट्रपति अब्दुलअज़ीज़ बूतेफ़्लीका ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. उनके ख़िलाफ़ कई सप्ताह से देश भर में व्यापक प्रदर्शन हो रहे थे.

बीस सालों से सत्ता पर क़ाबिज़ बूतेफ़्लीका पहले ही कह चुके थे कि वो इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे और 28 अप्रैल को अपना कार्यकाल समाप्त होने पर पद छोड़ देंगे.

हालांकि प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे लोगों ने कहा था कि पद छोड़ने का वादा काफ़ी नहीं है और वो तुरंत पद छोड़ें.

अल्जीरिया की शक्तिशाली सेना ने 82 वर्षीय बूतेफ़्लीका को देश की सत्ता संभालने के अयोग्य घोषित करते हुए उनसे इस्तीफ़ा देने के लिए कह दिया था.

Thursday, March 21, 2019

पाकिस्तान को अमेरिका की चेतावनी- अब भारत पर हमला हुआ तो 'बहुत मुश्किल' हो जाएगी

आतंकवाद के मसले पर अमेरिका ने पाकिस्तान को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर भारत पर आगे कोई आतंकी हमला होता है तो यह उसके लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है. पाकिस्तान को आगाह करते हुए अमेरिका ने साफ कर दिया है कि उसे आतंकी संगठनों पर ठोस कार्रवाई करनी होगी. अमेरिका ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि खास-तौर पर जैश-ए मोहम्मद और लश्कर-ए तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ पाकिस्तान को पुख्ता एक्शन लेना होगा.

वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को बताया कि पाकिस्तान को आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है. भारत-पाकिस्तान क्षेत्र में किसी प्रकार का तनाव पैदा न हो, इसके लिए जरूरी है कि पाकिस्तान खासकर जैश-ए मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के खिलाफ सख्त कदम उठाए. अमेरिका ने कहा है कि अगर हालात बिगड़ते हैं तो दोनों देशों के लिए खतरनाक होंगे. बता दें कि जैश-ए मोहम्मद वो आतंकी संगठन है, जिसने पुलवामा में 14 फरवरी को सीआरपीएफ जवानों के काफिले को निशाना बनाया था और उसमें 40 जवानों की शहादत हुई थी. इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर एयरस्ट्राइक कर वहां मौजूद आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया था. पुलवामा के दोषियों पर कार्रवाई के लिए भारत पाकिस्तान को सबूत भी सौंप चुका है.

अमेरिकी अधिकारी ने ये भी कहा कि पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान ने शुरुआती एक्शन लिए हैं, जिसमें आतंकी संगठनों की संपत्तियां जब्त की गई हैं और उनकी गिरफ्तारियां भी हुई हैं. पाकिस्तान ने जैश के कुछ प्रमुख ठिकानों को भी अपने कब्जे में लिया है. लेकिन हम इससे काफी ज्यादा एक्शन देखना चाहते हैं. अमेरिका ने पाकिस्तान से स्पष्ट कहा है कि पहले भी पाकिस्तान की तरफ से गिरफ्तारी जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन बाद में इन आतंकियों को छोड़ दिया जाता है. यहां तक कि आतंक के आकाओं को पूरे देश में घूमने की भी इजाजत मिल जाती है. ऐसे में पाकिस्तान को अब एकदम ठोस कार्रवाई करनी होगी.

बालाकोट में भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में पूछे जाने पर व्हाइट हाउस के अधिकार ने कहा कि अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय देखना चाहता है कि आतंकी संगठनों के खिलाफ ठोस और निर्णायक कार्रवाई हो. अधिकारी ने कहा, 'अभी पाकिस्तान की ओर से उठाए गए कदमों को लेकर पूर्ण आकलन करना जल्दबाजी होगी. हाल के दिनों में पाकिस्तान ने कुछ शुरुआती कदम उठाए हैं. मसलन, कुछ आतंकी संगठनों की संपत्तियां जब्त की गई हैं और कुछ की गिरफ्तारी भी हुई हैं और जैश के कुछ ठिकानों को प्रशासन ने अपने कब्जे में लिया है. लेकिन इन कदमों के अलावा अभी पाकिस्तान की ओर से बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.

बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान ने चुनाव लड़ने की खबरों पर विराम लगा दिया है. अभिनेता सलमान खान ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, ना चुनाव लड़ूंगा और ना किसी पार्टी का प्रचार करूंगा. सलमान खान ने एक तरह से सियासत से तौबा करते हुए कहा कि चुनाव लड़ने की अटकलों में कोई दम नहीं है.

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोटरों को प्रेरित करने के लिए हाल ही में सलमान खान और आमिर खान को टैग करते हुए ट्वीट किया था, जिसमें लिखा था कि वोटिंग सिर्फ अधिकार नहीं है बल्कि कर्तव्य भी है. ये वक्त देश के युवाओं को अपने अंदाज में वोट करने के लिए प्रेरित करने का है, जिससे हम अपने लोकतंत्र और देश को मजबूत कर सकें. सलमान खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ट्वीट का होली के दिन जवाब देते हुए लिखा कि 'हम लोकतंत्र में रहते हैं, वोट डालना हर भारतीय का कर्तव्य है. मैं हर वोटर से कहूंगा कि अपने अधिकार का इस्तेमाल करें.

बता दें कि मध्य प्रदेश कांग्रेस बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर में अपने प्रत्याशी के लिए लोकसभा चुनाव प्रचार में उतारने की कोशिश में था. जिससे बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर 30 साल बाद जीत दर्ज की जा सके.

सलमान का जन्म इंदौर के पलासिया इलाके में हुआ था और मुंबई में शिफ्ट होने से पहले उन्होंने इंदौर शहर में अपने बचपन का काफी समय गुजारा है. मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा था कि हमारे नेता सलमान खान से इंदौर में पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने की पहले ही बातचीत कर चुके हैं. हालांकि सलमान खान ने अब राजनीति में उतरने की खबरों और कयासों का खंडन कर दिया है.

Thursday, March 7, 2019

मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन में कितना साफ़ हुआ देश?

दावा- स्वच्छ भारत मिशन के तहत केन्द्र सरकार ने एक करोड़ शौचालय बनाने की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि अब भारत के 90 फ़ीसदी घरों में शौचालय है, जिनमें से तक़रीबन 40 फ़ीसदी 2014 में नई सरकार के आने के बाद बने हैं.

सच्चाई - ये बात सही है कि मोदी सरकार के समय घरों में शौचालय बनाने के काम ने रफ़्तार पकड़ी है, लेकिन ये बात भी सही है कि अलग-अलग कारणों से नए बने शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.

"आज, 90 फ़ीसदी से ज़्यादा घरों में टॉयलेट की सुविधा मौजूद है, जो 2014 के पहले केवल 40 फ़ीसदी घरों में थी" सितंबर 2018 में नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहा था.

लेकिन विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस परियोजना की आलोचना की थी.

कांग्रेस सरकार में पेयजल और स्वच्छता मंत्री रहे जयराम रमेश ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था, "हवाई दावों को सच साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर शौचालयों के निर्माण के लक्ष्य को पूरी तरह से भटका दिया."

स्वच्छ भारत ग्रमीण - इसके तहत गांवों में हर घर में शौचालय बनाने और खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है.

स्वच्छ भारत शहरी - घरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर भी शौचालय हो, ये सुनिश्चित करना इस मिशन का मक़सद है. साथ ही कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर भी मिशन में ज़्यादा फ़ोकस है.

भारत में खुले में शौच सालों से चली आ रही समस्या है, जिसकी वजह से कई बीमारियां भी फैलती हैं.

महिलाओं के लिए ये सुरक्षा से जुड़ा मामला भी है, क्योंकि घर में शौचालय नहीं होने की सूरत में महिलाओं को अंधेरे में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है.

भारत सरकार स्वच्छ भारत मिशन को सफल बताते हुए दावा कर रही है कि लक्ष्य का 96.25 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है.

जबकि अक्टूबर 2014 के पहले केवल 38.7 फ़ीसदी घरों में ही शौचालय थे.

इन आंकड़ों से साफ़ है कि भाजपा के शासन में कांग्रेस के शासनकाल से मुक़ाबले दोगुनी तेजी से शौचालय बने हैं.

स्वच्छ भारत मिशन: कितनी सफ़ाई.. कितनी गंदगी..
‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित होने के लिए बिहार कितना तैयार?
भारत के ग्रामीण इलाक़े, कितने खुले में शौच मुक्त हो पाए हैं, उस पर NARSS नाम की एक स्वतंत्र एजेंसी ने सर्वे किया है. नवंबर 2017 और मार्च 2018 के बीच किए गए इस सर्वे में 77 फीसदी ग्रामीण घरों में शौचालय पाए गए और ये भी बताया गया कि भारत में 93.4 फ़ीसदी लोग शौचालय का इस्तेमाल करते हैं.

इस सर्वे में 6,136 गांवों के 92,000 घरों को शामिल किया गया.

स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि देश भर के 36 में से 27 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त हो गए हैं, जबकि 2015-16 में केवल सिक्किम ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जो खुले में शौच मुक्त था.

टॉयलेट का इस्तेमाल
केन्द्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश भर में कितने शौचालय बने इसके कई आंकड़े हैं, लेकिन इसका कोई आंकड़ा नहीं कि बनाए गए शौचालयों का कितने लोग इस्तेमाल करते हैं.

साफ़ है कि शौचालय बनाने का ये मतलब कतई नहीं माना जाए कि उन शौचालयों का इस्तेमाल हो भी रहा है.

नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफ़िस के 2016 के आंकड़े के मुताबिक़ दो साल पहले जिन 45 फ़ीसदी घरों में शौचालय थे उनमें से पांच फ़ीसदी घरों में शौचालय का इस्तेमाल नहीं होता था और तीन फ़ीसदी घरों में शौचालयों में पानी का कनेक्शन नहीं था.

स्वच्छ भारत ग्रामीण मिशन में सचिव परमेश्वरन अय्यर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि स्वच्छ भारत मिशन के सफर में तब से अब तक कई बदलाव हुए हैं.

लेकिन कई एनजीओ ने इस मिशन पर काफी पड़ताल की है और उनकी पड़ताल में इस मिशन की कई ख़ामियां सामने आई हैं-

• कई शौचालय सिंगल पिट बन कर तैयार हुए हैं, जो हर पांच से सात साल में भर जाते हैं.

• कई जगहों पर शौचालयों के रख-रखाव की समस्या है.

• कई शहरों और गांवों में टारगेट ही गलत सेट किए गए हैं.

2015 में मोदी सरकार ने दावा किया था कि हर सरकारी स्कूल में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाए गए हैं.

लेकिन 2016 की ASER रिपोर्ट के मुताबिक़ 23 फीसदी सरकारी स्कूल में शौचालय की सुविधा है ही नहीं.

स्वच्छ भारत मिशन के कई रिपोर्ट से ये भी पता चला है कि शौचालय बनाने के टारगेट कई साल पुराने है और तब से अब तक काफी पानी बह चुका है.

2018 में गुजरात के स्वच्छ भारत मिशन पर जारी की गई CAG रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में शौचालय बनाने के टारगेट 2012 के हैं. लेकिन तब से अब तक वहां जनसंख्या भी बढ़ गई है और परिवार की संख्या भी.

खुले में शौच मुक्त का सच
बीबीसी की मराठी सेवा ने 2018 में महाराष्ट्र सरकार के दावों का सच जानने के लिए ख़ुद ही कुछ इलाक़ों का सर्वेक्षण किया था. उन्होंने पाया कि एक गांव में 25 फ़ीसदी घरों में शौचालय की सुविधा नहीं थी और वो खुले में शौच के लिए जाने के लिए मजबूर थे.

जैसे ही बीबीसी मराठी सेवा की कहानी स्थानीय प्रशासन के कानों तक पहुंची, प्रशासन तुरंत हरकत में आया जिसके बाद वहां और शौचालय बनाए गए.

Thursday, February 28, 2019

अमरीकी विमानों के दम पर टिकी है पाकिस्तानी वायु सेना

13 अप्रैल, 1948 को पाकिस्तान के रिसालपुर में पहली बार मोहम्मद अली जिन्ना ने तत्कालीन रॉयल पाकिस्तान वायु सेना के सदस्यों से कहा था कि "पाकिस्तान को अपनी वायु सेना जल्द तैयार कर लेनी चाहिए."

इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा था कि "यह एक कुशल वायु सेना होनी चाहिए, जो किसी से भी पीछे नहीं हो और पाकिस्तान की रक्षा के लिए सेना और नौसेना के साथ खड़ा हो सके."

71 साल बाद आज पाकिस्तानी वायु सेना सुर्ख़ियों में है और स्थितियां सामान्य नहीं हैं.

बालाकोट के बाद भारत और पाकिस्तान की वायु सेना सक्रिय हैं और दोनों देशों ने एक-दूसरे के विमानों को मार गिराने का दावा किया है.

भारतीय वायु सेना दुनिया की चौथी बड़ी सेना है. उसके पास 31 लड़ाकू दस्ता है. एक लड़ाकू दस्ते में 17 से 18 जेट होते हैं.

वहीं पाकिस्तान अपने पास 20 लड़ाकू दस्ता होने का दावा करता है और इस तरह भारतीय वायु सेना पाकिस्तानी वायु सेना से कहीं आगे है.

लेकिन इस तरह की तुलना एक-दूसरे के शक्तिशाली होने की पूरी कहानी नहीं बताता है.

रॉयल पाकिस्तान वायु सेना के शुरुआती दिन बहुत अच्छे नहीं थे. इस बात का ज़िक्र पाकिस्तान के आधिकारिक इतिहास में किया गया है.

लिखा गया है, "बंटवारे के निर्णय के बाद आधिकारिक समझौते के तहत पाकिस्तान को हथियारों, उपकरणों और विमानों का वैध हिस्सा देने के बाद भी भारत ने तत्कालीन रॉयल पाकिस्तान वायु सेना को मानने से इंकार कर दिया था."

"भारत से जो भी मिला था उसमें से अधिकांश सही नहीं थे. उपकरणों के बक्से में रद्दी माल और बेकार चीज़ें थीं और कुछ नहीं था."

कश्मीर को लेकर 1947-48 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष के बाद पाकिस्तान वायु सेना की यात्रा की शुरुआत हुई.

1965 और 1971 में लड़े गए युद्धों के दौरान भारत और पाकिस्तान की वायुसेना ने सक्रिय भूमिका निभाई थी. यही कारण है कि दोनों देश की सेना इनके पराक्रमों को मान्यता देती है.

आज पाकिस्तान के एफ़-16 और जेएफ़-17 थंडर विमानों की बात हो रही है. एफ़-16 का निर्माण अमरीका करता है, वहीं जेएफ़-17 थंडर चीन की मदद से पाकिस्तान ने बनाया है.

एफ़-16 सिंगल इंजन लड़ाकू विमान है, जिसे पाकिस्तान ने पहली बार 1982 में अपनाया था. अभी पाकिस्तान के पास इसका चौथा जेनरेशन मॉडल है.

इसके मुक़ाबले जेफ़-17 कहीं हल्का और सभी तरह के मौसम में इस्तेमाल किया जाने वाला लड़ाकू विमान है. इसे दिन और रात कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यह 'मल्टी-रोल' लड़ाकू विमान है.

आने वाले सालों में यह पाकिस्तान वायु सेना का सबसे शक्तिशाली विमान होगा, जो फ्रांस के मिराज जैसे पुराने विमानों की जगह ले लेगा.

पाकिस्तान वायु सेना जेएफ़-17 की पांचवी पीढ़ी को विकसित कर रहा है जो और भी उन्नत संस्करण होगा. हालांकि इस बारे में बहुत कम सुना और देखा गया है.

पाकिस्तान वायु सेना तीन जगहों से अपना नियंत्रण क़ायम करता है- पेशावर, लाहौर और कराची. इसके अलावा इसका एयर डिफेंस कमांड रावलपिंडी में है और स्ट्रैटेजिक कमांड इस्लामाबाद में है.

पाकिस्तान दावा करता है कि उसके पास एयर रडार, जटिल रख रखाव की सुविधाएं और उसे लॉन्च करने का बेहतर सेटअप नेटवर्क है.

हालांकि ये दावे मई 2011 में धरे रह गए थे, जब अमरीकी सेना ने अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान में घुस कर ओसामा बिन लादेन को मारा था.

पाकिस्तान वायु सेना उस समय अमरीकी घुसपैठ का पता नहीं लगा सकी थी, जिसने सभी को चौंका दिया था.

पिछले साल कैलिफोर्निया के थिंकटैंक रंद कोऑर्पोरेशन ने कहा था, "पाकिस्तान वायु सेना के नीतिगत निर्णय थल सेना लेती है. ये निर्णय वायु सेनाध्यक्ष की सलाह पर लिए जाते हैं. इसलिए वायु सेना के असल निति निर्धारक वायु सेना अध्यक्ष नहीं, थल सेना अध्यक्ष होते हैं."

इसका वायु सेना पर क्या असर होता है?

पाकिस्तान वायु सेना के पूर्व एयर ऑपरेशन डायरेक्टर और लेखक क़ैसर तुफ़ैल कहते हैं, "दुनिया में कोई भी वायु सेना ऐसी नहीं है, जिसके पास वो सबकुछ है जो वह चाहता है. कुछ मायनों में आर्थिक ज़रूरत कभी पूरी नहीं होती, क्या ऐसा नहीं है? लेकिन मैं उन सभी से असहमत हूं जो यह कहता है कि पाकिस्तान वायु सेना को उसका हक़ नहीं मिलता है."

पाकिस्तान वायु सेना के विकास के बारे में वो बताते हैं, "मेरे हिसाब से पाकिस्तान वायु सेना का विकास तीन चरणों से गुज़रा है. पहला, पाकिस्तान के गणतंत्र बनने तक. पाकिस्तान वायु सेना उस समय इस्तेमाल किए गए उपकरण चलाता था."

"इसके बाद दूसरा चरण रहा जब पाकिस्तान सेंट्रल ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन (CENTO) और साउथ इस्ट एशिया ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO) में शामिल हुआ. यह चरण भारत के ख़िलाफ़ लड़े गए 1965 के युद्ध तक चला. इस चरण में अमरीका के कई स्टार फाइटर जेट को शामिल किया गया, जिसमें एफ़ 86 और एफ़ 104 शामिल है. इस चरण में पाकिस्तान वायु सेना के सभी पायलट अमरीकी वायु सेना के साथ प्रशिक्षण लेते थे."

तीसरा चरण तब शुरू हुआ जब 1965 के युद्ध के बाद पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाए गए.

उन्होंने कहा, "इस चरण ने हमें विविधता दिखाई और प्रयास जारी है."

भारतीय वायु सेना के कुछ लोगों को लगता है कि पाकिस्तान की वायु सेना विकसित नहीं हो पाई है.

पिछले साल भारतीय वायु सेना के उपप्रमुख पद से रिटायर हुए एयर मार्शल एसबी देव कहते हैं, "पाकिस्तान की वायु सेना हमारी बराबरी करना चाहती है. उनके पायलट बहुत बुरे नहीं हैं लेकिन मेरी समझ में पाकिस्तान वायु सेना को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनकी वायु सेना अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए चीन की तरफ़ देख रही है."

Wednesday, January 30, 2019

मोदी से रिश्ते और बयानों से समझें क्या है गडकरी की पॉलिटिक्स

गडकरी ने अपने बयान में कहा, "सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है. इसलिए सपने वही दिखाओं जो पूरे हो सकें. मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं, मैं जो बोलता हूं वो शत प्रतिशत डंके की चोट पर पूरा होता है."

अपने इस बयान में गडकरी ने किसी नेता या पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका यह बयान उनकी अपनी ही सरकार की मुश्किलों को बढ़ा सकता है. गडकरी के बयान के बाद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट किया है, गडकरी जी हम समझ गए हैं कि आपका निशाना किधर है.

वहीं एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्वीट किया है गडकरी काफ़ी चतुराई से पीएम मोदी को आईना दिखाने का काम कर रहे हैं. इन सबका असर ये हुआ है कि बीजेपी को सफ़ाई देनी पड़ी है कि नितिन गडकरी का बयान विपक्ष के नेताओं के लिए था, ना कि नरेंद्र मोदी के लिए, क्योंकि प्रधानमंत्री जी सपने नहीं दिखाते हैं, सपने पूरे करते हैं.

दरअसल ये कोई पहला मौका नहीं है, जब गडकरी ने ऐसा बयान दिया है जो उनकी अपनी सरकार के लिए ही मुश्किल भरा साबित हो रहा है. बीते सात जनवरी को नागपुर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वे आरक्षण की व्यवस्था में यक़ीन नहीं रखते हैं. 'इस देश में इंदिरा गांधी जैसी नेता भी थीं, क्या उन्होंने कभी आरक्षण का सहारा लिया.'

इससे पहले भी एक बार मराठा आरक्षण के मुद्दे पर कह चुके थे कि आरक्षण देने का क्या फ़ायदा जब नौकरियां ही नहीं हैं.

इससे पहले 24 दिसंबर, 2018 में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम और तीन राज्यों में पार्टी के हाथ से सत्ता निकलने पर दिल्ली में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सालाना लेक्चर में उन्होंने कहा था कि पार्टी के विधायक और सांसद अच्छा काम नहीं करते हैं तो उसकी ज़िम्मेदारी पार्टी के मुखिया की होती है.

गडकरी के ऐसे बयान जब भी आते हैं राजनीतिक तौर पर हेडलाइंस बनाते हैं, क्योंकि मौजूदा समय में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी के सामने इस तरह के बयान देने वाले वे इकलौते नेता हैं.

उनके इन बयानों पर वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार अजय सिंह बताते हैं, "गडकरी जी खुलकर बोलते हैं, उनके दिमाग में जो आता है, वो बोलते हैं. लेकिन वे बीजेपी के विरोध में बोल रहे हैं या फिर प्राइम मिनिस्टर के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं, ये कहीं से समझ में नहीं आता है. वे जो बोलते हैं वो तो किसी और पार्टी के लिए भी सही हो सकता है."

बीजेपी पर नब्बे के दशक से ही नज़र रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार विजय त्रिवेदी की राय इससे उलट है. वे कहते हैं, "नितिन गडकरी मंजे हुए राजनेता हैं. वे जो कुछ भी बोलते हैं उसके मायने होते हैं. उन्होंने अपने ताज़ा बयान से इस ओर इशारा किया है कि उनकी सरकार में कुछ लोग ऐसे हैं जो केवल सपने दिखाते होंगे, लेकिन वे ख़ुद उनमें शामिल नहीं हैं. तीन राज्यों में बीजेपी की हार पर जो उनका बयान आया था, वह तो कांग्रेस के लिए नहीं ही रहा होगा ना."

दरअसल, नितिन गडकरी भारतीय जनता पार्टी के कोई आम नेता नहीं हैं, वे भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. पार्टी के अंदर उनकी पकड़ कितनी मज़बूत रही है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने संविधान को उनको दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए बदला था.

2009 से 2013 के बीच भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी के चलते पार्टी का संविधान ज़रूर बदला लेकिन पूर्ति घोटाले की आंच के चलते वे दोबारा पार्टी के अध्यक्ष नहीं बन पाए थे. इसके अलावा वे उस नागपुर से आते हैं जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय रहा है. ऐसे में उन्हें संघ का बेहद नज़दीकी नेता माना जाता रहा है.

विजय त्रिवेदी कहते हैं, "नितिन गडकरी जी को एक तरह से संघ के वायस के तौर पर देखा जाता है. ऐसे में उनके बयान से एक बड़ा संदेश ये ज़रूर उभर रहा है कि क्या संघ, ऐसे संदेश पार्टी और सरकार को तो नहीं देना चाहता? क्योंकि संघ से समर्थन के बिना गडकरी जैसे बड़े नेता ऐसे बयान तो नहीं ही दे सकते हैं."

हालांकि मराठी पत्रकार और विश्लेषक प्रकाश बल के मुताबिक, "संघ से गडकरी की बेहद नज़दीकी है लेकिन संघ उनके सहारे मौजूदा सरकार पर सवाल उठा रहा होगा, ऐसा आकलन करना बहुत दूर की बात होगी."

Tuesday, January 22, 2019

कौन हैं श्री शिवकुमार स्वामी जी जिनके निधन पर है तीन दिन का शोक

श्री श्री श्री डॉक्टर शिवकुमारा स्वामीजी, जिन्होंने 111 साल की उम्र में सोमवार को अंतिम सांस ली, उन्हें कर्नाटक में "वॉकिंग गॉड" या "चलता-फिरता भगवान" के नाम से जाने जाते थे.

वे पिछले आठ से भी ज़्यादा दशक से सिद्धगंगा मठ के प्रमुख थे, जो बेंगलुरू से 70 किलोमीटर दूर टुमकूर में लिंगायत समुदाय की सबसे शक्तिशाली धार्मिक संस्थाओं में गिना जाता है.

कर्नाटक के पूर्व अतिरिक्त चीफ़ सेक्रेटरी डॉक्टर एसएम जामदार ने कहा, "लिंगायत स्वामियों में, या कहें कि भारत के आध्यात्मिक गुरूओं में, उनकी शख़्सियत दुर्लभों में भी दुर्लभतम थी. वे कई स्वामियों के आदर्श थे."

बाक़ी धार्मिक गुरूओं से अलग

धार्मिक विषयों के जानकार, वचन स्टडीज़ के पूर्व निदेशक रमज़ान दर्गा कहते है, "88 सालों से उन्होंने हर जाति और हर समुदाय के अनाथों और बच्चों की सेवा की. कोई भी उनके आवासीय स्कूलों में जा सकता था, पढ़ सकता था. वो जो करते थे, वो बड़ा सीधा था - कि लोगों की सेवा करना भगवान की सेवा करने जैसा है."

चित्रदुर्गा स्थित मुर्गाराजेंद्र मठ के डॉक्टर शिवमूर्ति मुरूगा शरनु स्वामीजी ने कहा, "उनके मन में कभी भी जाति को लेकर कोई दुर्भावना नहीं रही. उन्होंने सबके लिए खाने का इंतज़ाम किया, ख़ास तौर से बच्चों के लिए, और उन्हें ज्ञान अर्जित करने और समाज को लेकर जागरुक होने के लिए प्रोत्साहित किया."

दर्गा कहते हैं, "केवल अलग जातियों से ही नहीं, अलग धर्मों से भी, जैसे मुसलमानों के बच्चों ने भी उनके आवासीय स्कूलों में पढ़ाई की."

पढ़ें- वीरशैव लिंगायत और लिंगायतों में क्या अंतर है?

डॉक्टर जामदार और दर्गा ने कहा कि स्वामीजी ने "केवल बासव की विचारधारा के अनुरूप जीवन जिया."

रमज़ान दर्गा ने कहा, "बासव विचारधारा ने सभी जाति और नस्ल की व्यवस्था को नकार दिया. वो वैदिक व्यवस्था के ठीक उलट है जो जाति व्यवस्था को मानती है. बासव समानतावादी थे. और स्वामीजी ने बासव की सोच वाले समाज को बनाने के लिए काम किया."

डॉक्टर जामदार कहते हैं, "आठ दशकों तक उन्होंने बच्चों को मुफ़्त भोजन और मुफ़्त शिक्षा दी. उनके संस्थानों में तीन हज़ार छात्र पढ़ा करते थे. आज वहाँ आठ से नौ हज़ार छात्र पढ़ते हैं. उनके छात्र पूरी दुनिया में फैले हैं. एक अनुमान है कि उनके संस्थान से लगभग 10 लाख छात्रों ने पढ़ाई की है. "

डॉक्टर शिवमूर्ति ने बताया, "उन्होंने सैकड़ों शिक्षण संस्थान बनवाए. उन्होंने इतनी लंबी उम्र अपने खान-पान और जीवन शैली में अनुशासन की वजह से पाई. "

थिएटर कलाकार सुषमा राव ने स्वामीजी को याद करते हुए एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखी है. अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ''मैं उस समय करीब 13 साल की थी. हम लोग स्कूल की तरफ से शिवगंगा घूमने गए थे. वहां से लौटते हुए हम सभी सिद्दगंगा मठ पर दोपहर के खाने के लिए रुके. खाने से पहले हम कुछ लड़कियों को अलग बैठने के लिए बोल दिया गया. कुछ देर में भगवा चोला ओढ़े एक बूढ़े साधू बाबा अपने अनुयायियों के साथ वहां से गुज़रे. उन्होंने हमसे पूछा कि हम अलग क्यों बैठी हैं. हमने बताया कि इस समय हमारा मासिक धर्म चल रहा है इसलिए हमें अलग बैठाया गया है.''

''यह जानकर उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने कहा यह तो सामान्य सी शारीरिक प्रक्रिया है, इसे लेकर शर्म क्यों है. उन्होंने हमें बाकी लड़कियों के साथ बैठकर खाने के लिए कहा. उन्होंने मुस्कुराते हुए हमें समझाया कि कभी भी उन बातों के लिए शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए जो एक महिला होने के नाते हमारे शरीर में होती हैं. हमें हमेशा अपने शरीर पर गर्व होना चाहिए. उस समय नहीं मालूम था कि वे कौन थे. हम उन्हें 'घूमने वाले भगवान' के तौर पर याद करते थे. हमारे लिए वे एक आदर्श थे.''

Friday, January 18, 2019

特朗普身上的官司:为何说美国司法体系面临空前挑战

《纽约时报》2019年1月11日报道,联邦调查局FBI在2017年中开始了一项针对特朗普反间谍调查,原因是特朗普的行为已经构成对美国国家安全的危害。FBI有足够理由相信特朗普可能在秘密为俄国政府工作。这项反间谍调查已经合并入特别检察官的调查之中。

经过两年来数以百计的美国调查记者的努力,加上公布出来的法庭文件,特朗普相干法律诉讼的轮廓已经非常清晰。正如新罕布什尔大学教授阿布拉姆斯教授在他长达450页、包括1650个权威脚注的《勾结的证据:特朗普出卖美国》(Proof of Collusion: How Trump Betrayed America) 一书中总结的:1990年代初,特朗普的房地产生意陷于崩溃,被俄国黑手党和情报部门控制的商业机构所挽救;特朗普的房产生意成为俄国黑帮洗钱的工具;俄国情报机构收集了大量的特朗普的个人黑材料,有效地控制了特朗普家族;特朗普竞选团队雇佣大批俄国线人;特朗普的多名顾问非法地与俄国政府秘密协商如何终止美国对俄国的经济制裁,作为交换,俄国情报机构全力帮助特朗普当选;特朗普家族成员和助手多次与俄方人士勾结,交换信息,被反间谍机构发现和媒体曝光后,试图掩盖真相,操纵证人,打压执法人员,妨害司法公正。

前国家安全局NSA (National Security Agency) 特工约翰• 辛德勒 (John Schindler) 在《评论家》杂志 (Observer) 撰文指出:特朗普集团的成员实际上是一群非常蹩脚的叛国者和罪犯,他们勾结俄国情报人员的方式极其业余。俄国情报人员和线人在西方世界的活动和通讯都受到美国和西方盟国反间谍机构的严密监控,任何美国人与他们的联系都被记录分析。特朗普和他的手下根本不知道美国情报部门的能力,所有他们通敌的证据都被一一记录在案,分析分类后,转交给特别检察官。《新闻周刊》2018年12月10日报道:一名特朗普助手被特别检察官传唤问话之后,哀叹 “他们什么都知道”。

代表加州第15选区的联邦众议员斯瓦维尔(Eric Swalwell) 指出:特朗普的竞选团队是一个犯罪组织,其领导的政府交接过渡团队也是一个犯罪组织,他本人也是一个犯罪份子。前联邦检察官罗森博格 (Chuck Rosenberg)认为:特别检察官穆勒使用的是经典的对待有组织犯罪黑帮的策略:剥茧抽丝,步步为营。从打手到上层,从外围到核心。随着刑事调查的深入,特朗普集团越来越显示出其本质——一个有组织的大型腐败犯罪黑帮。

根据美国调查记者加瑞特•格拉夫 (Garrett Graff) 、阿布拉姆森 (Seth Abramson) 等统计,在2019年初,至少有19宗平行进行的针对特朗普集团的刑事调查和诉讼。

俄国政府攻击美国2016年大选案:特别检察官正在深入调查俄国政府军事情报部门GRU窃取美国政府数据、侵入美国政府网络和选举系统,俄国特工部门"互联网研究中心" (Internet Research Agency) 在美国制造的假新闻,俄罗斯国家安全局FSB的黑客活动,以及特朗普集团与俄国政府和情报部门的串通合作,特别是2016年6月9日特朗普儿子小特朗普、女婿库什纳和竞选主任马纳福特(Paul Manafort) 与俄国特工在纽约特朗普大楼的密会。

此案进展:特别检察官已经起诉了12名隶属GRU的俄国军情人员、13名隶属互联网研究中心的俄国特工、三家俄国公司,和一名协助俄国特工伪装身份的美国公民。马纳福特的助手森姆•帕顿 (Sam Patten)已经和检方合作。从刑事诉讼的角度分析,起诉外国人即预示着检方将起诉与外国人串通阴谋的本国犯罪嫌疑人。马纳福特已经被起诉并被判有罪,并承诺与检方合作以避免终身监禁。美国法律界基本共识是:小特朗普和库什纳在2019年内会被起诉。

Thursday, January 10, 2019

मोदी ने राज्य में गठबंधन के संकेत दिए, कहा- हमारे दरवाजे हमेशा दूसरे दलों के लिए खुले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने के बाद भी दूसरे दलों को सरकार में शामिल करती रही है। उनका कहना था कि हम अपने पुराने दोस्तों का सम्मान करते हैं और अपने दरवाजे हमेशा दूसरों दलों के लिए खुले रखते हैं। हमारे लिए किसी दल के साथ गठबंधन का मतलब जनता के साथ गठजोड़ है।

मोदी गुरुवार को वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के जरिए तमिलनाडु के पार्टी कार्यकर्ताओं से बात कर रहे थे। उनका कहना है कि भाजपा उसी रास्ते पर चल रही है, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिखाया था। अटलजी ने ही भारतीय राजनीति को गठबंधन का धर्म समझाया था। एनडीए की मजबूती का आधार विश्वास है, न कि मजबूरी। उनसे पूछा गया था कि क्या भाजपा अन्नाद्रमुक, द्रमुक या फिर रजनीकांत से गठजोड़ करेगी?

कांग्रेस ने सेनाओं को गहरा आघात पहुंचाया-मोदी
मोदी ने कहा कि लोग मानते हैं कि कांग्रेस अर्थव्यवस्था में कुप्रबंधन के साथ भ्रष्टाचार की वजह से फेल हुई, लेकिन कांग्रेस ने सेनाओं को भी गहरा आघात पहुंचाया। पार्टी ने रक्षा क्षेत्र को बिचौलियों के हवाले कर दिया। कांग्रेस के इस कदम की वजह से सेना को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा। हाल ही में जिस बिचौलिये को पकड़ा गया है, उसकी कांग्रेस के प्रथम परिवार से नजदीकी रही है। देश की जनता यह जानने की हकदार है कि कैसे एक बिचौलिए मिशेल को सुरक्षा संबंधी कैबिनेट की बैठक का समय, सरकारी फाइल का स्टेटस पता था। 10 साल तक राफेल की खरीद प्रक्रिया में देरी होने के पीछे उसकी क्या भूमिका थी। उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने में क्या भूमिका रही?

रजनीकांत ने 2021 चुनाव लड़ने की घोषणा की
सुपरस्टार रजनीकांत ने 31 दिसंबर 2018 को घोषणा की थी कि 2021 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि, इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव में लड़ने के बारे में उनका कहना था कि इस पर फैसला सही समय पर लिया जाएगा। लोकल बॉडीज का चुनाव लड़ने से उन्होंने साफ तौर पर इनकार कर दिया था।

कमल बना चुके हैं पार्टी, आप से दिखी नजदीकी
तमिल सिनेमा के दूसरे सुपरस्टार कमल हासन अपनी नई पार्टी का ऐलान कर चुके हैं। मक्कल निधि मायम यानी पीपल्स जस्टिस सेंटर नाम से बनाई गई उनकी पार्टी तमिलनाडु में पिछले कुछ समय से सुर्खियों में रही है। आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ पिछले दिनों वे मदुरै में मंच साझा करते भी दिखे।

बॉक्सर एमसी मैरीकॉम अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग एसोसिएशन (एआईबीए) की वर्ल्ड रैंकिंग में पहले स्थान पर पहुंच गईं है। मैरीकॉम ने पिछले साल नई दिल्ली में वर्ल्ड चैम्पियन बनी थीं। यह उनका छठा वर्ल्ड चैम्पियनशिप खिताब था। उन्हें 48 किलोग्राम भार वर्ग में 1700 अंक मिले हैं। हालांकि, अगले साल टोक्यो में होने वाले ओलिंपिक खेलों में मैरीकॉम 48 की जगह 51 किलोग्राम भार वर्ग में चुनौती पेश करेंगी।

मैरीकॉम ने 2018 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स और पोलैंड में हुए एक टूर्नामेंट में गोल्ड जीता था। वहीं, बुल्गारिया में सत्रान्जा मेमोरियल टूर्नामेंट में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। मैरीकॉम के नाम कुल वर्ल्ड चैम्पियनशिप में छह, एशियन गेम्स में एक, एशियन चैम्पियनशिप में पांच, कॉमनवेल्थ गेम्स में एक और एशियन इंडोर गेम्स में एक गोल्ड जीता है।

सोनिया लाठेर 57 किलोग्राम भार वर्ग में दूसरे स्थान पर

दूसरी ओर, भारत की पिंकी जांगड़ा 51 किलोग्राम भार वर्ग और मनीषा मउन 51 किलोग्राम भार वर्ग में आठवें स्थान पर पहुंच गईं। वर्ल्ड चैम्पियनशिप में रजत पदक जीत चुकीं सोनिया लाठेर 57 किलोग्राम भार वर्ग में दूसरे स्थान पर कायम हैं।

Thursday, January 3, 2019

सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय सरकार से पूछा- बचाव अभियान में अब तक कामयाबी क्यों नहीं मिली?

मेघालय में एक अवैध खदान में 13 दिसंबर में फंसे 15 मजदूरों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह काफी गंभीर मामला है। यह 15 लोगों की जिंदगी और मौत का सवाल है। शीर्ष अदालत ने मेघालय सरकार से कहा कि आप जो भी बचाव अभियान चला रहे हैं, हम उससे संतुष्ट नहीं हैं। अब तक कामयाबी क्यों नहीं मिली? इस वक्त 1-1 सेकेंड अहम है। हम प्रार्थना करते हैं कि खदान में फंसे सभी मजदूर जीवित हों। उन्हें अब तक बाहर निकाल लिया जाना चाहिए था।

केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल जरूरी : सुप्रीम कोर्ट
मेघालय सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में घटनास्थल पर एनडीआरएफ के 72, नौसेना के 14 कर्मी मौजूद हैं। कोल इंडिया के लोग भी वहां 14 दिसंबर से प्रयास कर रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा है तो उन्हें अब तक कामयाबी क्यों नहीं मिली? केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल जरूरी है। तुंरत प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।

13 दिसंबर को मजदूर इस खदान में उतरे थे। इसी दौरान पास बहने वाली लैटीन नदी का पानी इसमें भर गया था। इसके चलते मजदूर अंदर ही फंस गए। खदान को रैट होल कहा जाता है। एनजीटी ने यहां ऐसी खदानों पर रोक लगाई थी, लेकिन अवैध तरीके से खनन जारी था।

मौके पर ये टीमें मौजूद
नौसेना: 14 सदस्यीय दल में गोताखोर भी शामिल। इसके अलावा री-कम्प्रेशन चैम्बर, रिमोट द्वारा ऑपरेट होने वाले उपकरण, पानी के भीतर खोज करने वाले उपकरण भी मौजूद हैं।
वायुसेना: दल 10 हाईपावर पंप लेकर मौके पर मौजूद। ये पंप हर मिनट 1600 लीटर पानी बाहर फेंक सकते हैं।
ओडिशा फायर डिपार्टमेंट: 20 सदस्यीय दल को इस तरह के हालात का अनुभव है। 
किर्लोस्कर और कोल इंडिया: किर्लोस्कर हाईपावर पंप लेकर मौके पर मौजूद है। इसी कंपनी ने इंडोनेशिया की गुफा में फंसी फुटबॉल टीम के बचाव अभियान में अत्याधुनिक उपकरण भेजे थे। कोल इंडिया ने भी हाईपावर पंप भेजे।
एनडीआरएफ-एसडीआरएफ: दोनों राहत बलों के सदस्य घटना के पहले दिन से ही मौके पर हैं। उनके पास खदान और उसमें फंसे मजदूरों के बारे में अहम जानकारियां हैं। इनके अलावा लोकल टीमें भी मौजूद हैं।

एनडीआरएफ के पास उच्च क्षमता के पंप नहीं थे। घटना के दो हफ्ते बाद एयरफोर्स से पंप पहुंचाने के लिए मदद मांगी गई।
जिला कमिश्नर को एक हफ्ता पंप मंगाने के लिए मेघालय सरकार को चिठ्ठी लिखने में, दूसरा हफ्ता कोल इंडिया से मदद मांगने में लग गया।
एनडीआरएफ के गोताखोर 40 फीट गहराई तक ही जा सकते हैं। नौसेना के गोताखोर 29 दिसंबर को मौके पर पहुंचे।
ओडिशा से फायर टीम संयोजन में कमी और लोकल प्रशासन की खामियों के चलते पहुंचने में देरी हुई।
हाईपावर पंपों की इसलिए जरूरत
350 फीट गहरी खदान में 70 फीट तक पानी भरा है। पहले पंपों से पानी निकालने की कोशिश की गई थी। यह इंतजाम नाकाफी हो गया था, इसलिए इसे रोक दिया गया था। बचाव दलों ने हाईपावर पंपों की मांग की थी ताकि पानी तेजी से बाहर निकाला जा सके। माइन सेफ्टी और कोल इंडिया के अफसरों ने भी पानी निकालने के लिए हाईपावर पंपों के इस्तेमाल का सुझाव दिया था।